दिल्ली हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट स्कूलों को फीस नहीं लेने का निर्देश देने से इनकार करते हुए कहा कि ऑनलाइन पढ़ाना कोई बच्चों का खेल नहीं है और इसके लिए टीचर्स को क्लासों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन प्लैटफॉर्म की व्यवस्था से जुड़े सभी खर्चों समेत इसके लिए बड़ा ढांचागत बंदोबस्त करना पड़ता है, जिस पर शिक्षा प्रदान की जा सके और इन सब व्यवस्थाओं के बाद यह कहना कि स्कूलों को फीस लेने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, बेतुकी बात होगी।

चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस हरिशंकर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई करते हुए उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें प्राइवेट स्कूलों को कोरोना संकट से उपजे मौजूदा हालात को देखते हुए छात्रों से फीस नहीं लेने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

एक वकील ने यह याचिका दाखिल की थी। इसमें दिल्ली सरकार के 17 अप्रैल के आदेश को रद्द करने या इस सीमा तक बदलने का अनुरोध किया गया था कि यदि फीस वसूली जाती है तो वह भी स्कूल फिर से खुलने के एक उचित समय बाद ली जाए।

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार के आदेश में कहा गया है कि कई निजी स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के प्रयास स्वागत योग्य कदम है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 2020-21 के शिक्षण सत्र के दौरान छात्रों को पाठ्यक्रम संबंधी नुकसान नहीं हो।

बैंच ने कहा कि हम पूरे मन से इस भावना का समर्थन करते हैं। स्कूलों और शिक्षकों द्वारा शिक्षा प्रदान करने में तथा ऑनलाइन प्लैटफॉर्मों के माध्यम से क्लासें लगाने में मेहनत से किए गए प्रयासों का न्यायिक संज्ञान लिया जा सकता है। नियमित क्लासों में आमने-सामने छात्रों को पढ़ाने की ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने में शिक्षकों के प्रयासों से दूर-दूर तक तुलना नहीं की जा सकती।

Input : Hindustan

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