आज कल उत्सवों में भी आधुनिक जीवन शैली का प्रभाव दिखाई देता है। परंतु परंपरागत वस्तुओं का भी अपना अलग स्थान है। आगामी दीपावली एवं छठ की तैयारी प्रारंभ हो गई है। सामानों की खरीदारी की जाने लगी हैं। वहीं दूसरी ओर इन पर्वों में अहम मिट्टी के दीये एवं हाथी, सहित अन्य जरूरी परंपरागत बर्तनों का निर्माण भी जोरों पर है।
कुंभकार दिन रात इस काम में लगे हैं, इस उम्मीद के साथ इस बार अच्छी खासी बिक्री होगी। बात करें मिट्टी निर्मित दीयों की तो इस पर भी चीन निर्मित दीया का प्रभाव दिख रहा है। बावजूद इसके दीपावली एवं छठ में मिट्टी से बने बर्तनों की मांग होती है।
कनुआनी गांव निवासी बद्री पंडित बताते हैं कि अब सिर्फ पर्व त्योहारों में ही यह पुश्तैनी काम चलता है। बाकी दिनों में मेहनत मजदूरी ही जीविका का साधन है। इस बर्तन निर्माण में खुद का खर्च निकल पाना भी मुश्किल है, परिवार चलाना तो दूर की बात है। दूसरे कि अब मिट्टी भी खरीदनी पड़ती है वहीं उसे चाक तक लाने के लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है। आज की युवा पीढ़ी इस काम में सहयोग नहीं करते।
वहीं राजू पंडित कहते हैं कि आकर्षक एवं कम कीमत पर चाइनीज माल बाजार में आने से स्थानीय मिट्टी के बर्तन एवं खिलौनों की मांग घट गई है। लागत खर्च भी मुश्किल से निकल पाता है। चुंकि पुरखों से यह काम होता आया है इसलिए किसी तरह इसे बरकरार रखने की कोशिश है। यह तय है कि हम लोगों की संतानें इसे नहीं चला पाएंगी।
Input : Dainik Jagran
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