आज (10 मार्च, रविवार) फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इसे विनायकी चतुर्थी करते हैं, इस दिन व्रत रख भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रीगणेश की पूजा में दूर्वा विशेष रूप से चढ़ाई जाती है। श्रीगणेश को दूर्वा क्यों अर्पित की जाती है, इस विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इसका वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है, जो इस प्रकार है-

इसलिए दूर्वा को मानते हैं इतना पवित्र

– दू‌र्वा को आम भाषा में दूब भी कहते हैं, ये एक प्रकार ही घास है। इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरी उतर जाती हैं।

– विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी बचाए रखती है। इसलिए दूर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक है।

– दूर्वा को देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है। दूर्वा को शीतल और रेचक (राहत पहुंचाने वाला) माना जाता है।

– दूर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है। इसके रस का सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और शरीर निरोगी रहता है।

– दूर्वा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम आदि पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं।

– पेट से जुड़ी बीमारियों में दूर्वा का रस राम बाण का काम करता है। बबासीर के लिए इसका रस फायदेमंद होता है।

Input : Dainik Bhaskar

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