देवोत्थान एकादशी पर शुक्रवार को श्रद्धालु भक्तगण व्रत रखते हुए लक्ष्मी नारायण की पूजा करेंगे। रात्रि में जगह-जगह तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन होगा। रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र ने बताया कि वैसे तो सभी एकादशी ही पापों से मुक्त होने के लिए की जाती है, लेकिन देवोत्थान एकादशी का महत्व अधिक माना जाता है। राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती है, उससे कई गुना अधिक पुण्य देवोत्थान यानी प्रबोधनी एकादशी का होता है।
हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा ने बताया कि इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। लोग धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। इस दिन के बाद शादी-विवाह के उत्सव शुरू हो जाते हैं। वास्तव में तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी। वह एक पतिव्रता व सतगुणों वाली नारी थी। पति के पापों से दुखी रहती। इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था। जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था। इस पर भगवान को उसका वध करना पड़ा। पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी सती धर्म को अपनाते हुए सती हो गई। कहते हैं कि उन्हीं की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। तुलसी के सद्गुणों के कारण भगवान विष्णु ने अगले जन्म में उनसे विवाह किया। सदर अस्पताल स्थित मां सिद्धेश्वरी दुर्गा मंदिर के पुजारी पं.देवचंद्र झा ने बताया कि मान्यता है कि जो मनुष्य तुलसी विवाह करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान का भी महत्व है। कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। कई लोग तुलसी-विवाह का आयोजन कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते हैं।