कोसी-बागमती नदी किनारे खगडिय़ा जिले के चौथम प्रखंड अंतर्गत रोहियार पंचायत स्थित बंगलिया गांव में अवस्थित सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कात्यायनी स्थान की ख्याति दूर-दूर तक है। शारदीय नवरात्र में ष्ठी के दिन यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन यहां श्रद्धा का सागर उमड़ पड़ता है।
यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। चार से पांच लाख श्रद्धालु वर्ष भर में मां के दरबार में आकर माथा टेकते हैं। शारदीय नवरात्र में तो अहर्निश श्रद्धा की सरिता प्रवाहित होती रहती है। यहां सोमवार व शुक्रवार को वैरागन के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है। इस शक्ति पीठ में माता के हाथ की पूजा की जाती है।
मंदिर का इतिहास
1595 ई. में राजा मुरार शाही को जलालुद्दीन अकबर ने चौथम तहसील सौंपा था। उनके वंशज राजा मंगल ङ्क्षसह और उनके मित्र सिरपत जी महाराज ने मां कात्यायनी की स्थापना की थी। एक ङ्क्षकवदंती के अनुसार राजा मंगल ङ्क्षसह शिकार करने जाते थे। सिरपत जी महाराज (हजारों गाय व भैंस के मालिक थे) जंगल में पशु चरा रहे थे। उस क्रम में उन्होंने देखा कि गाय रोजाना एक निश्चित स्थान पर दूध का स्श्राव करती हैं। उक्त स्थल पर मां का हाथ मिला। जिसे स्थापित कर मां की पूजा-अर्चना आरंभ कर दी गई। उस समय अस्थाई मंदिर का निर्माण किया गया। बाद में स्थानीय लोगों की मदद से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। पशुपालक यहां गाय-भैंस की दूध का पहला चढ़ावा चढ़ाते हैं। पशुपालक दूध का चढ़ावा चढ़ाने कितने भी दूर से क्यों नहीं आए, लेकिन दूध फटता नहीं है।
शक्ति पीठ पहुंचने का मार्ग नहीं है सुगम
मानसी- सहरसा रेलखंड के धमारा घाट स्टेशन पर उतरकर श्रद्धालु दक्षिण पूर्व दिशा में लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर मां कात्यायनी स्थान पहुंचते हैं। इसके अलावा वाहनों से बदला घाट होते हुए मानसी- सहरसा रेल ट्रैक के बगल के रास्ते से छोटी लाइन के परित्यक्त पुल संख्या 50 तक पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों की मदद से उक्त पुल की मरम्मत कर रास्ता को सुगम बनाया गया है। उसके पश्चात पुल संख्या 50 को पैदल पार कर लगभग 500 मीटर उत्तर दिशा में चलकर मां कात्यायनी स्थान पहुंचते हैं। फिलहाल डीएम के निर्देश पर चौथम सीओ भरत भूषण ङ्क्षसह मंदिर की व्यवस्था की देखरेख कर रहे हैं।
Source : Dainik Jagran
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