बेला औद्योगिक क्षेत्र में पिछले दिनों एक बड़े प्लांट का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर मंच पर कमल छाप वाले मंत्रियों, विधायकों व पूर्व मंत्री ही विराजमान थे। हाथ छाप वाले जिले के एकमात्र विधायक जी कार्यक्रम के लगभग अंत में पहुंचे। जगह भी मिली चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी के बगल में। थोड़े सकुचाए। मगर बगल में उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी ने राहत दी। कुछ गुफ्तगू हुई। तब तक मंच से बोलने का आमंत्रण आ गया।
मुख्य अतिथि से पहले अंतिम भाषण होना था। दो-चार शब्दों में ही बात रखनी थी। इससे पहले के वक्ताओं ने फीलगुड वाली बातें ही की थीं। विधायक जी ने बस इतना ही बोले, औद्योगिक क्षेत्र में जलजमाव का निदान जरूरी है। इस अंतिम संबोधन में क्षेत्र के उद्यमियों को अपना दर्द सबके सामने आ गया। दर्शक दीर्घा से एक उद्यमी बोल पड़े, अंतिम गेंद पर विधायक जी ने मार दिया छक्का।
अंगूर खट्टे हैं…
विधानसभा चुनाव में लालटेन वाले युवराज ने तीर वाले मांजन पर खूब व्यंग्यबाण छोड़े थे। सत्ता नहीं मिली तो युवराज की जगह किंग मेकर ने मोर्चा संभाला। लालटेन की लौ कम की। कार्यकर्ताओं को ‘सरकार’ पर मुलायम ही रहने की नसीहत दी। इससे जिले में लालटेन वाले कार्यकर्ताओं में भी मकर संक्रांति से पहले खिचड़ी पकने की उम्मीद जग गई। तीर वालों के साथ नरम लहजे में बातचीत होने लगी। उठना-बैठना भी होने लगा।
मगर ‘सरकार’ ने जैसे ही संभावनाओं को खारिज किया, बोल व तेवर बदल गए। पटना में लालटेन वाले युवराज फिर हमलावर हुए तो मुजफ्फरपुर में भी कार्यकर्ता ने ‘तीर’ पर निशाना लगा दिया। विधि व्यवस्था से लेकर शराब पर सवाल। कुर्सी की आस लगाए पार्टी के पूर्वी क्षेत्र के एक जनप्रतिनिधि कह रहे, इंतजार कीजिए। 75 का संख्या बल है। कभी भी अलटा-पलटी हो जाएगा। वहीं तीर वाले कार्यकर्ता चुटकी ले रहे, अंगूर खट्टे हैं।
जब साहब के सामने ही उलझ गए दो पदाधिकारी
बड़े साहब ने इसी सप्ताह कुर्सी संभाली तो मातहतों ने परिचय के साथ चेहरा चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। यहां तक कि दो वरीय पदाधिकारी उनके सामने ही आपस में उलझ पड़े। दरअसल साहब परिचय के साथ संबंधितों से विभाग के काम का भी हिसाब ले रहे थे। एक वरीय पदाधिकारी से आने वाली शिकायतों के बारे में पूछा गया। उन्होंने एक विभाग से संबंधित छह हजार शिकायत आने की बात कही।
साथ ही रिपोर्ट नहीं आने के कारण आवेदनों के लंबित होने का ठीकरा भी फोड़ दिया। बगल में बैठे विभाग के वरीय पदाधिकारी को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने तपाक से जवाब दिया, …इतनी रिपोर्ट तो भेज दी गई है। दोनों वरीय पदाधिकारियों की तल्खी को देख कनीय को बीच बचाव करना पड़ा। फिलहाल मामला शांत हो गया। मगर यह तल्खी आसानी से खत्म होती नहीं दिख रही।
बिना हेलमेट वाले तो दिख जाते, पिस्टल वाले कैसे बच जाते
जब भी पूछिए, वर्दी वाले पदाधिकारी अपराध खत्म करने के ही दावे करते नजर आएंगे। मगर हाल में जिले में अपराध की घटनाएं इन दावों की चुगली ही करती हैं। अधिकतर घटनाओं को अंजाम बाइक सवार अपराधी ही दे रहे। वह भी हथियारों से लैस। हत्या से लेकर बैंक डकैती को ऐसे अंजाम दे रहे जैसे सड़कों पर उनके लिए कोई रोक-टोक नहीं। इन घटनाओं से सहमे शहरवासियों को यह समझ नहीं आ रहा कि बिना हेलमेट वाले बाइक सवार को आसानी से देखने वाली नजर से अपराधी कैसे बच जा रहे।
कुछ तो अब यही कह रहे, बिना हेलमेट वाले जितने पकड़ाते उतने से जुर्माना की जगह फायदा का खेल हो जाता है। काम फायदा का हो तो सभी ज्ञानेंद्रियां काम करने लगती हैं। बस सरकार थोड़ा लोभ-लालच देकर तो देखे। फिर देखिए कइसे पिस्टल वाला पकड़ाता है।
Input: Dainik Jagran