ट्यूब पर पानी से जुड़ी लघु फिल्मों की भीड़ में आपको एक फिल्म मिल जाएगी, वॉटर नाम की 5 मिनिट की इस फिल्म में एक आदमी सूखी ज़मीन पर पानी की तलाश में भटक रहा है. उसे कहीं भी पानी नज़र नहीं आ रहा है और वो प्यास के मारे बेहाल है तभी उसे एक हैंडपंप यानि चापाकल नज़र आता है. वो दौड़ कर उसके पास पहुंचता है और उसे लगातार चलाता रहता है लेकिन पानी की एक बूंद नहीं टपकती है. तभी उसकी नज़र सामने पेड़ पर टंगे एक मर्तबान पर पड़ती है. वो तेजी से उस मर्तबान के पास जाता है. वो मर्तबान पानी से भरा हुआ है. उसे देखकर उस आदमी की जान में जान आती है और वो तुरंत उसके पास पहुंचता है.

मर्तबान में थोड़ा सा पानी बचा हुआ है

जैसे ही वो उसके पास पहुंच कर उस मर्तबान को खोलता है उसे सामने एक बोर्ड दिखता है. उस बोर्ड में लिखा हुआ है कि अगर इस पानी को बोरवेल में डालोगे तो हैंडपंप काम करने लगेगा. अब आदमी असमंजस में है पानी डाले या न डाले क्योंकि अगर लिखा हुआ काम किया तो जो पानी मौजूद है वो भी हाथ से निकल जाएगा. काफी देर सोचने के बाद वो हैंडपंप में पानी डालता है और हैंडपंप चलाता है लेकिन पानी नहीं आता है. अभी भी मर्तबान में थोड़ा सा पानी बचा हुआ है और असमंजस बरकरार है, शेक्सपियर की तर्ज पर करूं या न करूं कि स्थिति में जूझता आदमी आखिर बचा हुआ पानी भी बोरवेल में डाल देता है और फिर हैंडपंप को चलाना शुरू करता है लेकिन कोई फायदा नहीं होता है और पानी नहीं आता है.

पानी को लेकर अपना स्वार्थ त्यागना होगा
वो निराश होकर वहीं बैठ जाता है, तभी हैंडपंप में धीरे से पानी आना शुरू हो जाता है, आदमी हैंडपंप मे आते हए पानी को देखकर फिर से जोश में भर उठता है और तेजी से पंप चलाता है. थोड़ी देर बाद वो भर पेट पानी पी कर चैन की सांस लेता है. फिर जब वो जाने को होता है तो उस मर्तबान को फिर से भर कर उसी जगह पर टांग देता है. फिल्म के अंत में एक संदेश आता है कि हमें पानी को लेकर अपना स्वार्थ त्यागना होगा. दरअसल ये स्वार्थ त्यागना ही सबसे बड़ी जड़ है. जब पानी हर जगह उपलब्ध होता था तो उसे इस्तेमाल करने वाले ने सिर्फ उसे इस्तेमाल किया लेकिन कभी भी ये नहीं सोचा होगा कि मैं इसे जमा कर लेता हूं.

पानी खराब और कम होने लगापानी नदियों, कुओं, तालाबों से लिया जाता था उसका इस्तेमाल होता था और जीवन इसी तरह चलता था. फिर सीमाओं में बंधे हम इंसानों ने देश, राज्यों और जिलो में खुद को बांटा. नदियों का पानी डैम में संग्रहित हुआ. डैम का पानी कॉलोनियों की टंकियों में और वहां से हमारे घरों की टंकियो में जमा होने लगा. धीरे धीरे पानी की किल्लत और पानी का संघर्ष बढ़ता गया. दरअसल पानी जिस फितरत के साथ जन्मा है उसमें रुकना निहित नहीं है. हमने पानी को रोक कर जमा करके, अपने घरों के ऊपर टंकियों को बना कर उसमें पानी को एकत्र करके पानी की फितरत को बदलने की सोची है जिसका नतीजा है कि पानी खराब और कम होने लगा.

कई जगह पर हफ्तों तक पानी नहीं आता

दरअसल 24 घंटे सातों दिन घर के नलों में पानी आने के मुद्दे पर कई सालों से बहस चलती आ रही है. विकसित देशों में तो ये कई दशकों से हो रहा है. वहां नल से आने वाले पानी को सीधे पिया जा सकता है और किसी भी इस्तेमाल में लिया जा सकता है. लेकिन भारत जैसे देश जहां आज भी दिन में नियत समय पर पानी आता है या कई बार, कई जगह पर हफ्तों तक पानी नहीं आता है, कुछ जगह तो ऐसी भी है जहां पानी लाने के लिए महिलाओं को घर से बहुत दूर पैदल चल कर पानी लाना पड़ता है. ऐसे में भारत में जल संग्रहण एक प्रथा बन गया है.

घर से पानी है कितना दूर

एक आंकडे के मुताबिक भारत में घरों के भीतर पानी की सुविधा पर नज़र डालें तो ग्रामीण इलाकों में 27.5 फीसदी इलाके ही ऐसे है जहां निवास पर ही पानी उपलब्ध है जबकि शहरो के लिए ये आंकड़ा 56.1 फीसदी के आसपास है वहीं पूरे भारत के हिसाब से 37.3 फीसदी इलाका ही ऐसा है जहां घरों के अंदर पानी की सुविधा मौजूद है. वहीं अगर घरों से बाहर लेकिन पास के क्षेत्र में पानी की उपलब्धता पर नज़र डालें तो ग्रामीण इलाकों में ये 30.7 फीसदी और शहरों में ये 24.6 फीसदी है.

घर से करीब एक किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है

200 मीटर के दायरे में पानी की उपलब्धता जहां ग्रामीण इलाकों में 30.4 फीसदी है वहीं शहरों में ये 13.8 प्रतिशत हैं. 200 से 500 मीटर पर पानी की उपलब्धता गांवो में 8.4 प्रतिशत है तो शहरों में 3.2 फीसदी है. एक किलोमीटर या उससे दूर से पानी लाने वाले इलाकों का प्रतिशत गांवो मे 2.1 है तो शहरों में 1.2 और पूरे भारत भर में 1.8 फीसदी इलाका ऐसा है जहां पीने का पानी हासिल करने के लिए घर से करीब एक किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है. हालांकि घरों के पास पीने के पानी की उपलब्धता का प्रतिशत 2012 से बढ़ा है.

पानी को जमा करने की जरूरत

जहां 2012 में भारत के 55.9 फीसदी इलाकों में घरों के पास पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध थी तो वहीं 2018 में ये प्रतिशत बढ़कर 65.5 फीसदी हो गया है लेकिन अभी भी चूंकि पानी की उपलब्धता को लेकर भारत के कई इलाकों में एक सवाल खड़ा रहता है कि वो कल मिलेगा या नहीं इसलिए पानी को जमा करने की फितरत हमारे मानस में घर कर गई है. दुनिया भर के जानकार मानते हैं कि अगर घरों मे 24 घंटे पानी आता है तो इसके कई लाभ होते हैं.

गंगाजल के प्रभाव को खत्म किया है

सबसे खास बात तो यही है कि पानी की फितरत बहना होती है अगर पानी बहता है तो उसके खराब होने की आशंकाएं कम हो जाती हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण गंगा नदी है. जिसके प्रवाह को रोक कर उस पर डैम का निर्माण करके हमने लगातार गंगाजल के प्रभाव को खत्म किया है. आज आलम ये है कि गंगा में पाया जाने वाला बेक्टिरियोफेज जिसकी बदौलत गंगा का पानी कभी खराब नहीं होता था उसका खुद का जिंदा रह पाना मुश्किल हो गया है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह प्रवाह में रुकावट रही है.

दिल्ली में 24 घंटे सातों दिन पानी की व्यवस्था की जाएगी

गंगा से जुड़े तमाम आंदोलन में भी लगातार प्रवाह की बात तो तरजीह दी गई है. इसी तरह अगर पाइप में भी पानी लगातार बहता रहेगा तो उसके संदूषित होने के खतरे कम हो जाएंगे साथ ही पानी की बचत भी होगी. कारण साफ है पानी की बचत में सबसे बड़ी रुकावट उसे बचा कर रखना ही है. बीते दिनों अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि दिल्ली में 24 घंटे सातों दिन पानी की व्यवस्था की जाएगी. इस बात से फिर से पानी के सप्लाई को लेकर एक बहस शुरू हो गई है. दरअसल दिल्ली में 70 फीसदी पानी यमुना पर निर्भर करता है. वहीं 25 फीसदी पानी अपर गंगा कैनाल से आता है और 5 फीसद पानी के लिए भूजल का इस्तेमाल होता है.

नलों से 24 घंटे पानी आता रहेगा

ऐसे में 24 घंटे नल से पानी आने के मामले को शक से देखा जा रहा है. दरअसल नल से 24 घंटे पानी आना और घर में पानी संग्रहण नहीं करना एक ऐसी व्यवस्था है जिस पर जनता भी आसानी से विश्वास नहीं कर पाएगी. सरकारी मशीनरी के लिए सबसे बड़ी मशक्कत इसी बात की है वो जनता के बीच में ये विश्वास पैदा कर दे कि उनके नलों से 24 घंटे पानी आता रहेगा और वो सीधे नल खोल कर पानी पी सकता है. साथ ही 24 घंटे पानी की सप्लाई की सफलता में व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करना और खामियों को जड़ से खत्म करना भी एक चुनौती है.

हालांकि अनुभवी लोग मानते हैं कि 24 घंटे पानी की सप्लाई देना नियत समय पर पानी देने से कम चुनौतीपूर्ण है और खर्चीला भी कम है. क्योंकि लगातार पानी दिए जाने से लीकेज के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है. साथ में पानी की गुणवत्ता भी बनी रहती है, क्योंकि लीकेज नहीं होने और पंप से पानी खीच कर जमा करने से जो पाइपलाइन में वेक्यूम बनता है उस पर रोक लगेगी तो इससे पानी के खराब होने या उसके संदूषित होने की संभावनाएं भी कम हो जाती हैं. इसके अलावा सेंसर लगा कर अशुद्धियों का पता भी आसानी से लगाया जा सकता है.

 

पानी की सप्लाई की योजना

2003 में पहली बारी केद्र ने पूरे दिन भर पानी की सप्लाई की योजना पर काम करना शुरू किया था. कर्नाटक के कुछ जिलो में इस पर सफलतापूर्वक काम किया जा चुका है. अनुभवी लोग कहते हैं कि पानी में अशुद्धी आने की आशंका तब बनती है जब पाइपलाइन खाली रहती है औऱ उसमें वैक्यूम बन जाता है तब उसके अंदर संदूषण होने का खतरा बढ़ जाता है.

जनता को क्या है फायदा

24 घंटे और सातों दिन पानी आता है तो पानी के संग्रहण पर होने वाला खर्च बचेगा. नलों से पानी कब आएगा इसके इंतज़ार का झंझट नहीं रहेगा और नौकरी पेशा लोगों का वक्त बचेगा. नई पाइपलाइन बिछेगी तो लीकेज पाइप लाइन से जो गंदा पानी आ रहा था वो रुक जाएगा. नलों में मीटर लगेगा और 24 घंटे पानी आएगो तो जो लोग पानी किफायत से खर्च करते हैं उन्हें उतना ही पैसा देना होगा जितना पानी वो इस्तेमाल करते हैं.

बस इस पूरी प्रक्रिया में हमें ये समझना बेहद ज़रूरी है कि पानी के 24 घंटे की उपलब्धता दरअसल हमारे मानस से उस डर को खत्म करने के लिए बेहद ज़रूरी है कि पानो जोड़ लो. क्योंकि पानी उस धन की तरह है जिसे अगर हमने गड़ा कर रखा तो हम उसे सड़ा कर रख देंगे. उसका काम बहना है. चलना है.

Input : News18

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