वैशाली संसदीय क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर एनडीए की उम्मीदवार वीणा देवी नामांकन रद्द होने के संकट से तो उबर गयी हैं। लेकिन उनके सामने बाधाएं और भी हैं।
कुछ दिख रहा है तो , कुछ अदृश्य है! उन्हें इस चुनाव में सीधा मुकाबले की चुनौती और भितरघात के खतरे से एक साथ पार पाना होगा। पिछले चुनाव में लोजपा प्रत्याशी रामाकिशोर सिंह ने बहुकोणीय मुकाबले में राजनीति के दिग्गज खिलाडी़ राजद प्रत्याशी रघुवंश प्रसाद सिंह को पराजित किया था। इस बार वीणा देवी का सीधा मुकाबला राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह से है।
2014 के लोकसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में रामाकिशोर सिंह के मुकाबले पिछड़ गये थे। रघुवंश जितने वोटों के अंतर से विधानसभा क्षेत्रों में पिछडे़ थे, उससे कहीं अधिक वोट जदयू के प्रत्याशी विजय सहनी और निर्दलीय उम्मीदवर अन्नु शुक्ला ने काट लिये थे।
गुजरे जमाने के बाहुबली मुन्ना शुक्ला की पत्नी अन्नु जदयू का टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर मैदान में उतर गयी थीं। अन्नु को 103709 वोट मिले थे। जबकि जदयू के उम्मीदवार विजय सहनी ने 144807 वोट हासिल किये थे।
रामाकिशोर सिंह को 304060 वोट मिले थे। उन्होंने 99163 वोटों के अंतर से राजद के रघुवंश सिंह को हराया था। रघुवंश सिंह को 204060 वोट मिले थे। इन आंकडो़ं से जाहिर है कि रघुवंश सिंह जितने वोटों के अंतर से हारे थे,उससे दोगुना से भी अधिक वोट अन्नु और विजय के खाते में चले गये थे।
इस बार जब मुकाबला आमने-सामने का है और अन्नु शुक्ला या विजय सहनी जैसे मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं हैं तो वे ढाई लाख वोटर किधर जायेंगे यानी किसे वोट देंगे? वैशाली फतह करने के लिए रघुवंश और वीणा को वोटों का यह गणित हल करना होगा!
जानकारों का कहना है कि विजय सहनी को जो वोट मिले थे, उसमें आधा से अधिक मल्लाहों और अन्य पिछडी़ जातियों का था। उस वोट पर दोनों उम्मीदवारों की समान दावेदारी है। इसी प्रकार अन्नु शुक्ला को मिले वोटों में उनके सजातीय वोटर यानी भूमिहार और गैर भूमिहार जातियों के वोट भी शामिल थे।
जानकार मानते हैं कि यह वोट भी बंटेगा। यानी मुकाबला जब आमने-सामने का है तो वोटों का ध्रुवीकरण होना तय है। चुनाव में जब कोई लहर नहीं होता है तो , वोटों का ध्रुवीकरण जाति और जमात के आधार पर ही होता है।
वीणा देवी के मुकाबले में खडे़ रघुवंश प्रसाद सिंह लगातार पांच बार वैशाली से सांसद रहे हैं। उनकी पहचान वीणा देवी के पति जदयू एमएलसी दिनेश सिंह के राजनीतिक गुरु की भी है। रघुवंश सिंह की खासियत राजपूतों के सर्वमान्य नेता की भी है।
यानी वे पार्टी की सीमा से बाहर जाकर राजपूतों में ‘पूजे’ और ‘पूछे’ जाते हैं! यही वजह है कि उनके सजातीय वोटरों का जो हिस्सा विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोटर रहता है,वह संसदीय चुनाव में राजद के रघुवंश सिंह का समर्थक बन जाता है। ऐसे में वीणा देवी के सामने राजपूत वोटरों को अपने साथ जोड़ने की चुनौती है। दिनेश और वीणा को राजपूतों के कुछ नेता अपने लिए ‘राजनीतिक खतरा’ मानते हैं। इसीलिए वे इशारों में रघुवंश सिंह को चुनने का की बात करते हैं!
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