पंजाबी स्‍टाइल का बंद गले का कोट और धोती, ये थाा नोबेल पुरस्‍कार ग्रहण करने वाले डॉक्‍टर विनायक बनर्जी आउटफिट। स्‍वीडन के स्‍टॉकहॉम कंसर्ट हॉल में मौजूद सभी पुरुष जहां सूट में थे वहीं भारतीय मूल के बनर्जी और नीली साड़ी पहने उनकी पत्‍नी इस्‍थर डुफ्लो अपनी इसी आउटफिट की वजह से यहां सबसे अलग दिखाई दे रहे थे। इस यादगार पल के वक्‍त बनर्जी की मां, उनके बेटे भाई समेत उनके कुछ दोस्‍त भी वहां पर मौजूद थे। इन दोनों के इस आउटफिट ने जहां कंसर्ट हॉल के लोगों को चौंकाया होगा वहीं हर भारतीय को गर्व करने का मौका भी दे दिया। ऐसा इसलिए क्‍योंकि इस पोशाक ने बता दिया कि भारतीय कहीं भी रहें लेकिन अपनी मूल सभ्‍यता और संस्‍कृति का निर्वाहन करना नहीं भूलते।

आपको बता दें कि इस मौके को यादगार बनाने के लिए हजारों किमी दूर कोलकाता की प्रेसीडेंसी यूनि‍वर्सिटी ने एक थ्री डी वाल बनाई थी, जिसमें 1998 में अर्थशास्‍त्र के लिए नोबेल पुरस्‍कार जीतने वाले अमर्त्‍य सेन और बनर्जी को दिखाया गया था। भारतीय मूल के प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी (Abhijit Vinayak Banerjee) और उनकी पत्‍नी डुफ्लो को अर्थशास्‍त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। आपको बता दें कि अभिजीत की मां भी अर्थशास्‍त्री हैं।

आपको जानकर हैरत हो सकती है लेकिन ये सच है कि अर्थशास्‍त्र में नोबेल पाने वाले अभिजीत का पसंदीदा विषय पहले मैथ्‍स हुआ करता था। ये सब्‍जेक्‍ट उनके दिल और दिमाग पर छाया हुआ था। ये भी कहा जा सकता है कि वो इसको लेकर काफी हद तक जुनूनी थे। यही वजह थी कि देश के प्रतिष्ठित आईएसआई (Prestigious Indian Statistical Institute) में एडमिशन लिया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका रुझान अर्थशास्‍त्र की तरफ हो गया और उन्‍होंने इस इंस्टिट्यूट को बाय-बाय कह दिया। उनकी मां झीमा अभिजीत को एक्‍सीडेंटल  इकोनामिस्‍ट बताती हैं। जब बनर्जी को नोबेल पुरस्‍कार देने की घोषणा हुई थी तब उनकी मां ने भी बताया था कि वह मैथ्‍स में आगे जाना चाहते थे लेकिन फिर अचानक उन्‍होंने अपनी फील्‍ड बदल ली।

क्‍यों छोड़ा आईएसआई

अभिजीत का मैथ्‍स को छोड़कर अर्थशास्‍त्र की तरफ रुझान बढ़ने की एक वजह उनकी काफी ज्‍यादा ट्रेवलिंग थी। पहले पहल ये बात समझ में आना जरा मुश्किल है। लेकिन अपनी पढ़ाई के दौरान उन्‍होंने ट्रेन से काफी यात्राएं की थीं। इस दौरान उन्‍होंने भारत को और यहां की अर्थव्‍यवस्‍था को काफी करीब से देखा और समझा। साथ ही उनके मन में इसकी वजह जानने और इसकी बारीकियां समझकर इसको दूर करने का ख्‍याल भी आया। यही वजह थी कि आईएसआई जैसे इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने के बाद भी उन्‍होंने इसको छोड़कर प्रेसीडेंसी कॉलेज में अर्थशास्‍त्र को चुना और इसी राह पर आगे बढ़ निकले।

अभिजीत ने नोबेल पुरस्‍कार पाते समय जो पोशाक पहनी वह भारत और भारतीयता के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाती है। यह उनकी पसंद भी है। उन्‍हें ज्‍यादातर कुर्ता पहनने का शौक है। उनके दूसरे शौक में क्‍लासिकल म्‍यूजिक सुनना है। अक्‍सर खाल समय में वह यही सुनते हैं। इसके अलावा अभिजीत को स्‍पोर्ट्स में भी काफी दिलचस्‍पी है।समय मिलने पर वह क्रिकेट से लेकर टे‍बल टेनिस तक में हाथ आजमाने से नहीं चूकते हैं। इसके अलावा उन्‍हें खाना बनाना काफी पसंद है। बंगाली और मराठी खाना वो बहुत अच्‍छा बनाते हैं।

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आपको बता दें कि 1983 में दिल्‍ली के जेएनयू में एडमिशन रिफॉर्म को लेकर जो प्रदर्शन हुए थे उनमें उन्‍हें जेल तक की हवा खानी पड़ी थी। इस दौरान वह करीब दस दिनों तक जेल में रहे थे। इसी वर्ष भारत के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने कांग्रेस के लिए न्‍याय योजना का अंतिम खाका तैयार किया था। इसको पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। अभिजीत और डुफ्लो द्वारा दिए गए गरीबी से निपटने के सिद्धांतों को कई देशों ने अपने यहां पर लागू भी किया है। इसका इन देशों को फायदा भी हुआ है। एस्‍थर डुफ्लो अर्थशास्‍त्र में नोबेल पाने वाली दुनिया की दूसरी महिला हैं। वहीं एस्‍‍‍‍‍थर और अभिजीत ऐसे छठे दंपत्ति हैं जिन्‍हें ये सम्‍मान मिला है।

 

 

 

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