नई दिल्ली. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ने कहा है कि भारत के साथ रिश्तों में आई गलतफहमी को दूर कर लिया गया है और अब दोनों देशों को भविष्य को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए. ओली ने कहा कि पड़ोसियों में प्यार और समस्याएं लगी रहती हैं. बीबीसी हिंदी सर्विस को दिए हालिया इंटरव्यू में ओली ने स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच एक समय गलतफहमी की स्थिति पैदा हो गई थी. हालांकि उन्होंने मामले पर और ज्यादा कुछ नहीं कहा.

पिछले महीने नेपाल के लोगों को संबोधित करते हुए केपी ओली ने कहा था कि भारत के साथ सीमा विवाद को राजनयिक माध्यमों के जरिए ऐतिहासिक समझौतों, नक्शों और दस्तावेजों के आधार पर सुलझाया जाएगा. उन्होंने कहा, “हां, एक समय दोनों देशों के बीच गलतफहमी की स्थिति बन गई थी, लेकिन अब मामले को सुलझा लिया जाएगा. हमें पिछली बातों को भुलाकर बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ना होगा.” 69 वर्षीय नेपाली प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें एक सकारात्मक रिश्ता कायम रखना होगा.

बता दें कि नेपाल में केपी ओली अल्पमत की सरकार के अगुआ हैं. नेपाल में प्रतिनिधि सभा को 22 मई को भंग किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए रविवार को देश की शीर्ष अदालत की एक संविधान पीठ का गठन किया गया. पीठ के गठन को लेकर न्यायाधीशों के बीच मतभेद की वजह से अहम सुनवाई में देरी हुई. पीठ का गठन नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्तियों के वरिष्ठता क्रम और विशेषज्ञता के आधार पर किया है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि सदन को भंग किये जाने से जुड़े मामलों पर सुनवाई शुरू करने के लिये छह जून को संविधान पीठ का गठन किया जाएगा. न्यायालय के अधिकारियों के मुताबिक नई संविधान पीठ में न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति मीरा ढुंगना, न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और स्वयं प्रधान न्यायाधीश शामिल हैं.

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने अल्पमत सरकार की अगुआई कर रहे प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सलाह पर 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को पांच महीनों में दूसरी बार 22 मई को भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. न्यायमूर्ति विशंभर प्रसाद श्रेष्ठ के बीमार पड़ने के बाद उनके क्रमानुयायी न्यायमूर्ति भट्टाराई और न्यायमूर्ति खातीवाड़ा को संविधान पीठ में शामिल किया गया है. इससे पूर्व संविधान पीठ के गठन को लेकर विवाद के कारण सुनवाई प्रभावित हुई थी.

अदालत के सूत्रों ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश राणा ने इससे पहले न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ को उस पीठ के लिये चुना था जो “असंवैधानिक” तौर पर सदन को भंग किये जाने के खिलाफ दायर करीब 30 याचिकाओं पर सुनवाई करती.

भंग किए गए सदन के करीब 146 सदस्यों ने भी सदन की बहाली के अनुरोध के साथ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है. इनमें नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा भी शामिल हैं, जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के तहत नई सरकार के गठन का दावा भी पेश किया था. राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन दोनों के सरकार बनाने के दावे को खारिज करते हुए कहा था कि “दावे अपर्याप्त” हैं.

विवाद उस वक्त खड़ा हो गया था जब देउबा के वकील ने उन दो न्यायमूर्तियों को संविधान पीठ में शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के एकीकरण एवं पंजीकरण के पुनर्विचार मामले में पूर्व में फैसला ले चुके हैं. न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ के पीठ न छोड़ने का फैसला लेने के बाद, दो अन्य न्यायामूर्तियों ने पीठ से खुद को अलग कर लिया. इससे प्रधान न्यायाधीश राणा को पीठ का पुनर्गठन करने पर मजबूर होना पड़ा.

इस बीच, विपक्ष के गठबंधन ने ओली सरकार द्वारा कैबिनेट में फेरबदल किए जाने की शनिवार को निंदा की. ओली ने शुक्रवार को मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था. नये कैबिनेट में तीन उप प्रधानमंत्री, 12 कैबिनेट मंत्री और दो राज्य मंत्री हैं. विपक्षी गठबंधन ने एक बयान में कहा कि ऐसे समय में जब सदन को भंग किये जाने का मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, तब मंत्रिमंडल में फेरबदल कर ओली ने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों का उपहास किया है.

Source : News18

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