यहां देवी दर्शन के लिए भारतीयों को पाकिस्तान सरकार से इजाजत लेनी होती है. मान्यता है कि यहां दर्शन से सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.
पूरे देश में शारदीय नवरात्र की धूम है. देवी मां को सभी रूपों में सजाया और पूजा जा रहा है. देवी के शक्तिपीठों पर भी भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है. आज हम बताने जा रहे हैं एक खास शक्तिपीठ के बारे में. खास इसलिए क्योंकि देवी का यह मंदिर भारत में नहीं पाकिस्तान में है! हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर की. इसे हिंगलाज भवानी मंदिर भी कहा जाता है. कहा जाता है कि यह मंदिर 2000 साल से भी अधिक पुराना है.
यह मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर बसा यह मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. यहां जाने का रास्ता बहुत मुश्किल है लेकिन भक्त और श्रद्धालु साल भर इस मंदिर में आते हैं. नवरात्रों के दौरान यहां मेला लगता है जहां हजारों की संख्या में हिंदू और मुसलमान आते हैं.
इस मंदिर की कहानी बहुत प्राचीन है. भगवान शिव और देवी सती का विवाह हो चुका था. लेकिन देवी सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर का अपमान किया तो देवी सती ने आत्मदाह कर लिया. जब शंकर जी को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो गुस्से में भर उठे. आत्मदाह के बाद देवी के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरा.
हिंगलाज मंदिर वहां स्थित है जहां देवी सती का सिर गिरा था. इसीलिए मंदिर में माता अपने पूरे रूप में नहीं दिखतीं, बल्कि उनका सिर्फ सिर नजर आता है.
यहां पर हिंदू-मुसलमान की एकता साफ नजर आती है. यहां मुसलमान भी देवी के सामने सिर झुकाए नजर आते हैं. पाकिस्तानियों के लिए यह मंदिर नानी का मंदिर है. नानी के इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपना सिर झुकाते हैं.
यहां पहुंचने का रास्ता जितना मुश्किल है, उतना ही सुन्दर भी. यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है लेकिन प्राचीन बहुत है.
क्या भारतीय यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं? नहीं. वहां जाने के लिए भारतीयों को पाकिस्तान सरकार से परमिशन लेनी पड़ती है. अगर पासपोर्ट वीजा सबकुछ सही हो तो पाकिस्तान सरकार शायद अनुमति दे दे.
यह शक्तिपीठ बहुत सिद्ध है और दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह भी मान्यता है कि जो भी भक्त 10 फीट लंबी अंगारों की एक सड़क पर चलते हुए माता के दर्शन करने पहुंचे, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.