सोमवार से पितृ पक्ष शुरू हो जाएगा और यह छह अक्टूबर तक चलेगा। पितृपक्ष में प्रतिपदा तिथि का श्रद्ध एवं तर्पण 21 सितंबर को ही किया जाएगा। शास्त्रों में मनुष्यों के लिए तीन ऋण बताए गए हैं। इनमें देव, ऋषि और पितृ ऋण हैं। मृत पिता आदि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक जो प्रिय भोजन दिया जाता है, वह श्रद्ध कहलाता है। यानी पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्रद्ध कहते हैं।
फलित दर्शन ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के पंडित प्रभात मिश्र बताते हैं कि श्रद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु व श्रेय प्राप्त करने वाली संतानें होती हैं। इसलिए सभी के लिए श्रद्ध करना आवश्यक माना गया है। श्रद्ध कर्म से पितृ ऋण का उतारना आवश्यक है, क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए अनेक यत्न या प्रयास किए। उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निर्थक होता है। श्रद्ध पक्ष में उसी तिथि पर श्रद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है। ¨पडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। इस प्रकार जो श्रद्धादि कर्म संपन्न करते हैं वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंतकाल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं। श्रद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रात: और शाम के समय श्रद्ध निषेध कहा गया है।
Source : Dainik Jagran
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