मैंने कभी चिड़िया नहीं देखी

अबकी बार जो आंख की पलक का बाल टूटे
उल्टी मुठ्ठी पर रख
माँगना विश कि
तुम्हारे मोबाइल की स्क्रीन से
दो हरी पत्तियाँ आजाद होकर
किसी अनाथ ज़मीन  पर टीन  की गुमटी आबाद करे

जिसके आगे तुम एक आंख वाला पानी का दीया बालना
उसे महाआरती की कोई जरूरत नहीं है

देखना ये आग गर्भवती हो
जनेगी ढेर हरे -हरे बच्चे

फिर हरे बच्चों के स्कूल फॉर्म में
तुम पिता का नाम वाले कॉलम में “जंगल” लिखना

जैसे तुम्हारा स्पर्श भी तुम्हारा व्यक्तित्व है
वैसे ही छूना
जंगल से चिड़िया के संवाद को
जो रोज़ छोटी प्रार्थनाएं कर
ईश्वर उगाने में व्यस्त है

कई बरस-बरस बाद जब  तुम्हारा बच्चा

विज्ञान की किताब में
तितली को पकड़ने की बेचैनी जिएगा

पेड़ की कहानी सुन
हिंदी की कक्षा में रोएगा

और एक दिन
चिड़िया के चित्र में मोम कलर भरते हुए चीखेगा

मैंने कभी चिड़िया नहीं देखी
तब तुम बिना बाल काढ़े घर की चप्पलों में ही
उसे काँधे पर चढ़ा
कंकरीट के शहर से
दौड़ना इन्हीं जंगलों की ओर
क्योंकि बच्चे की इस चीख से डरावना कुछ भी नहीं

गांधारी की बंधी आंखें होकर
अपने भविष्य को चबाने से अच्छा है
हमें हरी कमीज़ें पहन लेनी चाहिए

खुद को मिट्टी की किन्हीं गहरी दरारों के बीच बोकर
अब हमें पेड़ हो जाना चाहिए

 – डॉ उषा दशोरा, जयपुर

Input : Hindustan

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