इसी मेडिकल की कुव्यवस्था ने मेरे पिता को मुझसे छिना था। क्या केंद्रीय मंत्री या मुख्यमंन्त्री में इतना दम है कि ओ अभी ये आदेश जारी कर सके की एसकेएमसीएच मुजफ्फरपुर में तैनात और सरकारी माल खा रहे डॉक्टर अपने किसी भी निजी अस्पताल में एक पल के लिए भी ड्यूटी नही करेंगे। अपना सारा समय उसी ईमानदारी से उसी अस्पताल में बिताएंगे जिस ईमानदारी से ओ हर महीने गरीबो के इलाज के नाम पर सरकार से लाखों का वेतन उठाते है।
मुझे अच्छी तरह याद है 2007 का वह अक्टूबर का महीना और नवरात्र का दिन जब इसी मेडिकल मुजफ्फरपुर की कुव्यवस्था ने मुझ 14 साल के लाचार बच्चे से उसके पिता का छाया छीन लिया था।
तभी से मुझे इस मेडिकल मुजफ्फरपुर के नाम से नफरत होने लगी,तबसे मुझे आजतक कोई भी इस अस्पताल में जाने के लिए कहता है तो मेरा पूरा शरीर सीहर जाता है।
आखिर ऐसा क्यों होता है जानना चाहेंगे ।शायद आपके साथ भी होता होगा।लेकिन चलिये हम अपना ही अनुभव बताते है।ऐसे हम तो इसे अस्पताल नही बल्कि यमराज के पास जाने का एक पड़ाव मात्र समझते है।
मुझे अच्छी तरह याद है जब मेरे पैसे न होने के बावजूद लोगो ने मुझे मेरे पिता को इसी मेडिकल में भर्ती करने का सुझाव दिया था,क्योकि यहाँ फ्री इलाज होता है।
मगर जब यहाँ भर्ती के बाद दिन पर दिन बीतता गया।
लगातार तीन दिन तक चयनित डॉक्टर के न आने के बाद स्थिति गंभीर रूप से बढ़ती गई तो पता चला की डॉक्टर साहब अपना निजी क्लिनिक चलाने में व्यस्त थे।
फिर क्या वही हुआ जो सबके साथ होता है लास्ट पोजीसन में रेफर और गांधी सेतु पार करते करते पटना पहुँच स्वर्ग सिधार गए।
ये मौत भले ही एक गरीब की मौत थी,मगर इस मौत के पीछे उस सिस्टम का पूरा हाथ था जो उन डॉक्टरों को पूरी खुली छूट दे खी है कि आप सरकारी अस्पताल में हाजिरी बनाइये,सरकारी माल खाइये और अपना निजी क्लिनिक चलाइये।
ओ तो शुक्र मनाईये उस कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों का जो थोड़ा मोड़ा इलाज कर देते है इन गरीबो का नही तो इन वेतनधारियो को फुर्सत कहा है हराम का माल खाने का।
आज भी यह सोचकर अपने आप में कसक होता है कि काश पैसे होते और हम इस सरकारी अस्पताल में न जाते तो हमारे पिता हमारे पास होते।
माफ़ करना पाप कुछ हमारी गरीबी की मजबूरियों ने तो कुछ इस सिस्टम के दलालों ने आपको मुझसे छीन लिया।
लेकिन दर्द उससे भी ज्यादा आज हो रहा है कि आज सोशल मीडिया पर इतनी जागरूकता के बाद भी उसी अस्पताल में इन डॉक्टरों की लापरवाही और सिस्टम के नाकामी से एक पिता से उसके मासूम छीन रहे है।