घर डूब गये है, छूट गये है,आशियाने हमारे।
तू ही बता सरकार,अब कहाँ होंगे ठिकाने हमारे।।

हर साल ये बाढ़ की विकरालता हमे लूट जाते है,
हर साल हमारा घर पानी मे गिरकर टूट जाते है।

हर साल लिखी जाती है,अखबारों में फ़साने हमारे।
तू ही बता सरकार,अब कहाँ होंगे ठिकाने हमारे।।

हर साल चूड़ा मिठ्ठा खिचड़ी और पैसे बाट दिए जाते है,
हर साल यू ही नदियों एंव नहरों के बांध काट दिए जाते है।

कब तक विज्ञापन में देते रहोगे झूठी योजना के तराने हमारे।
तू ही बता सरकार,अब कहाँ होंगे ठिकाने हमारे।।

आखिर इन जटिल समस्याओं का निदान क्यों नहीं होता,
आखिर शासन अपनी जिम्मेदारियों का बोझ क्यों नही ढ़ोता।

कब तक यू ही पीढ़ियों को लूटा जाएगा,बाढ़ के बहाने हमारे।
तू ही बता सरकार,अब कहाँ होंगे ठिकाने हमारे।।

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