अभिनेता से नेता बने मिथुन चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं, जो फिल्मों से लेकर राजनीतिक जीवन में कई अहम किरदार निभा चुके हैं। कभी वामपंथी झुकाव वाले मिथुन तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहे हैं। अब उन्होंने भाजपा का झंडा थाम लिया है। मिथुन की यह अपील कि बंगाल में रहने वाले सभी बंगाली हैं और वे उनके साथ खड़े हैं, भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों में मददगार हो सकती है।

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मिथुन भारतीय सिनेमा में बंगाल के सबसे सफल सितारों में एक हैं। वह गांव-गरीब और मजदूरों के हीरो माने जाते हैं। उनके ज्यादातर प्रशंसक छोटे शहरों और गांवों से जुड़े हैं। मिथुन के जरिये भाजपा बंगाल में गांव-गरीब और मजदूरों तक पहुंच बनाना चाहती है। अभिनेता के भाजपा में आने से पार्टी को काफी मजबूती मिली है, क्योंकि उसे पश्चिम बंगाल की क्षेत्रीय अस्मिता से जुड़े ऐसे विशिष्ट लोगों की जरूरत थी, जिससे वह खुद को बंगाली भद्रलोक में स्थापित कर सके। साथ ही वहां की जड़-जमीन के साथ अपना नाता स्थापित कर पाए। इस कड़ी में मिथुन का आना उसके लिए राजनीतिक रूप से लाभ का सौदा हो सकता है।

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सितारों पर दांव की रणनीति

मिथुन के भाजपा में शामिल होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह किस तरह से पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकते है। इसे समझने के लिए आपको ममता बनर्जी के टिकट गणित को समझना होगा। ममता ने इस बार के चुनाव में फिल्मी दुनिया से पांच अभिनेत्री और दो अभिनेताओं को उतारा है। चूंकि, मनोरंजन की दुनिया में मिथुन दा की जबरदस्त पैठ है। ऐसे में भाजपा ने बहुत बड़ा मास्टरस्ट्रोक खेला है। यह कितना असरदार साबित होगा, ये तो दो मई को ही पता चलेगा।

सियासी प्रतिभा का लोहा मनवाया

दरअसल, मिथुन चक्रवर्ती के अभिनय के दीवाने तो करोड़ों हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक प्रतिभा के कद्रदान भी कम नहीं हैं। कॉलेज के दिनों में कम्युनिस्ट पार्टी के करीबी रहे मिथुन साल 2014 में ममता की पार्टी में शामिल हुए और राज्यसभा सांसद भी बने। दो साल बाद 2016 में राज्यसभा सांसद के पद से इस्तीफा देने के बाद से मिथुन दा ब्रेक पर चल रहे थे, लेकिन अब उनका ब्रेक खत्म हो गया है।

Source : Hindustan

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