वो भी एक वक्त था जब पहनने के लिये पैंट भी नहीं थे और आठवीं क्लास तक निक्कर पहन कर जाता था. लेकिनज़िंदगी के इन्ही अभावों ने मुझे अंदर से मज़बूत कर दिया. मैं गांव में रहता था, खेती करता था, मवेशियों को चराता था लेकिन, जब भीसमय मिला, चाहे खेतों की रखवाली करते हुए या फिर मवेशियों की चराई के साथ, इसे अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया.

प्रेमसुख डेलू कहते हैं – जब लोग कहते थे कि सिविल सेवा परीक्षा और हिन्दी माध्यम के साथ सफलता कठिन है तो मैने सोचा मेरे पाससंसाधनों की कमी है, लेकिन, सपना देखने… बड़े सपने देखने पर तो कोई प्रतिबंध नहीं है.

 

मेरे लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं था. मैं तो धरातल पर था और वहाँ से गिरने की कोई संभावना नहीं. लेकिन, मुझे पता था कि यहाँ सेआगे जाने की, बड़ा बनने की असंख्य संभावनाएँ हैं. वे कहते हैं – यदि आप मेरी पृष्ठभूमि में झांक कर देखेंगे, तो आप इस सफलता केबारे में सोच भी नहीं सकते. मैं एक गांव में रहा हूँ, पूरी शिक्षा सरकारी स्कूल में की. मेरे माता–पिता, मेरी बड़ी बहन अनपढ़ हैं. मेरे पिताऊँट चराते थे. जब मैं छठी कक्षा में पहुंचा तब तो अंग्रेजी वर्णमाला सीखना शुरू किया. आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरीअंग्रेजी भाषा पर पकड़ कितनी रही होगी.

एक बड़े संयुक्त परिवार के लिए, हमारे पास भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा था और परिवार में केवल कमाऊ सदस्य मेरे बड़े भाई जोकांस्टेबल (राजस्थान पुलिस) हैं. आप समझ सकते हैं कि एक कांस्टेबल का वेतन कितना होता है और एक बड़े परिवार को चलाने, उनकी जरूरतों पूरा करने और सामाजिक दायित्वों को निभते जीवन कितना मुश्किल रहा होगा. मैं आपको बताऊ – मेरे भाई भी समानरूप से योग्य है; लेकिन, उन्होंने अपना कैरियर परिवार की देखभाल करने के लिए बलिदान कर दिया और आज मैं जो कुछ हूँ यह सबउनकी वजह से ही है.

मैंने बचपन में ही ‘सिविल सेवा‘ में कैरियर बनाने के बारे में सोचा था. मुझे याद है जब मैं 10 वीं कक्षा में था, मैं अपने आप को हर समयपढ़ाई में झोंके रखता था तब मेरे एक शिक्षक ने मुझे सलाह दी – मुझे अभी कई मंज़िले तय करनी हैं और लक्ष्य तक पहुंचना है तो कमसे कम 6 घंटे की नींद ज़रूर लेते रहो.

 

वे कहते हैं – किसी के लिये मन में कोई द्वेश नहीं, कोई पछतावा नहीं. मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरा एक परिवार है जो एक–दूसरे के लिए परवाह करता है उसके अलावा जीवन में आपको और क्या चाहिये?

प्रेमसुख डेलू की सफलता का अंदाजा इससे सहज लगाया जा सकता है कि छह साल में ये 12 बार सरकारी नौकरी में सफल हुए. गुजरात कैडर के आईपीएस प्रेमसुख डेलू ने पटवारी से लेकर आईपीएस बनने तक का सफर तय किया है.

इनकी सरकारी नौकरी लगने का सिलसिला वर्ष 2010 में शुरू हुआ. सबसे पहली सरकारी नौकरी बीकानेर (Bikaner) जिले में पटवारीके रूप में लगी. दो साल तक बतौर पटवारी के पद पर काम किया, मगर दिल में कुछ बड़ा करने की चाह थी. इसलिए पढ़ाई और मेहनतजारी रखी.

प्रेमसुख डेलू ने पटवारी पद पर रहते हुए कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं दी. ग्राम सेवक परीक्षा में राजस्थान में दूसरी रैंक हासिल की, मगरग्राम सेवक ज्वाइन नहीं किया. क्योंकि उसी दौरान राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा का परिणाम आ गया और इसमें प्रेमसुख डेलू ने पूरेराजस्थान में टॉप किया. असिस्टेंट जेलर के रूप में ज्वाइन करते उससे पहले राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर चयन हो गया.

प्रेमसुख डेलू ने राजस्थान पुलिस में एसआई के पद पर ज्वादन नहीं किया, क्योंकि उसी दौरान इनका स्कूल व्याख्याता के रूप में चयनहो गया तो पुलिस महकमे की बजाय शिक्षा विभाग की नौकरी को चुना. इसके बाद कॉलेज व्याख्याता, तहसीलदार के रूप में भीसरकारी नौकरी लगी. कई विभागों में 6 साल की अवधि में अनेक बार सरकारी नौकरी लगने के बाद भी प्रेमसुख ने मेहनत जारी रखी औरसिविल सेवा परीक्षा में 170वाँ रेंक प्राप्त किया है और हिंदी माध्यम के साथ सफल उम्मीदवार में तृतीय स्थान पर रहे है।

I just find myself happy with the simple things. Appreciating the blessings God gave me.