– कोई मंत्री जी से पूछे कि बच्चे ख़ाली पेट लीची क्यों खायें? क्या उन बच्चों के घर में संतुलित आहार था और फिर भी जा कर लीची खा लिए? अगर नहीं था घर में कुछ खाने को तो ज़िम्मेदार कौन है? नीतीश बाबू या बीस साल तक पिछड़ों का मसीहा बन कर घोटाला करने वाले लालू जी. जिन्होंने पिछड़े वर्ग को सिर्फ़ लाठी की ताक़त बतायी शिक्षा का महत्व नहीं. वरना साल-दर-साल मुख्यमंत्री कैसे बनते. या फिर वो माँ-बाप जो चुनाव के वक़्त अपनी जाति-धर्म देख कर चोरों को अपना नेता चुन लेते हैं.

ऊपर से अब सोशल मीडिया पर मरे हुए बच्चों के सरनेम पर पड़ताल चलने लगा है. महतो, मंडल, यादव, पासवान ढूँढा जा रहा. बुद्धिजीवी वर्ग कह रहा भूमिहार-ब्राह्मण तबके से अगर बच्चे मरे होते तो ख़बर बनती. ये सच में नासमझ हैं या नासमझी का नाटक कर आम लोगों को बेवक़ूफ़ बना रहें ते वही जाने.

मगर हक़ीक़त तो ये है कि बच्चे जो मर रहें हैं उनकी सिर्फ़ एक जाति और धर्म है और उसका नाम ग़रीबी है.

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