बिहार की राजधानी पटना के छात्र बहुल मोहल्लों में साल्वर गैंग पूरे साल सक्रिय रहता है। आर्थिक रूप से कमजोर व होनहार बच्चों की जानकारी कोचिंग सेंटर के कर्मी व उसके दोस्तों से गिरोह तक पहुंचता है। गिरोह से जोडऩे के लिए उनकी काउंसिलिंग कराई जाती है। सबसे अधिक साल्वर पटना के महेंद्रू, बहादुरपुर, बाजार समिति और बोरिंग रोड स्थित लाज से ही पकड़े जाते रहे हैं। मेधावी छात्रों को झांसे में लेने के लिए पहले उन्हें कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। उन्हें एडवांस में रुपये देने के साथ ही पर्यटन स्थलों की सैर कराने का पूरा खर्च गिरोह उठाता है। उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उनके परिचित साल्वर से मिलाया जाता है। वह उन्हें पूरी प्रक्रिया की जानकारी देते हैं। साथ ही जोखिम कम होने का विश्वास दिलाया जाता है। कई सीनियर छात्रों के बारे में जानकारी दी जाती है कि वह पिछले कई सालों से दूसरे के स्थान पर परीक्षा में बैठते हैं। उन्हें क्या हुआ है? जो पकड़े जाते हैं, उनकी भी जानकारी दी जाती है। उनकी जमानत सहित तमाम खर्च गिरोह द्वारा उठाने की बात कही जाती है। उनसे बात भी कराई जाती है।

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दिल्ली, राजस्थान, बेंगलुरु में बैठकर गिरोह चला रहा सरगना

सूत्रों की मानें तो साल्वर गिरोह के पीके उर्फ प्रेम कुमार उर्फ निलेश और फरार चल रहे अतुल दोनों पटना के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से उनका दिल्ली, राजस्थान, बेंगलुरु और यूपी के शहरों में ठिकाना रहा है। वहां वे कोचिंग में पढऩे वाले ऐसे छात्रों की तलाश करते हैं, जो नीट को क्लियर नहीं कर सकते, लेकिन आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं। गिरोह रकम के हिसाब से तय करता है किस छात्र को कितनी रैंक के बीच लाना है। एक हजार से 50 हजार रैंक के लिए 15 से 30 लाख रुपये तक की डिमांड होती है। एक हजार से कम रैंक के लिए एक करोड़ तक की बोली लगती है। इनमें ज्यादातर एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे छात्र ही साल्वर बनते हैं। पूरी प्रक्रिया के दौरान साल्वर गैंग सही अभ्यर्थी का मूल प्रमाण पत्र अपने पास रखता है।

पांच स्तर पर काम करता है गिरोह

गिरोह कई स्तर में बंटकर टास्क पूरा करता है। पांच स्तर पर पूरे साल प्रक्रिया चलती रहती है। परीक्षा से सालभर पहले ही साल्वर मिशन में जुट जाते हैं। पहला स्तर : सरगना के साथ उसके कुछ करीबी लोग शामिल होते हैं। ये नीट में रैंक दिलाने के लिए डील करते हैं और छात्रों की भी तलाश करते हैं। दूसरा स्तर : चुने गए छात्रों की जगह बैठने और उनके मिलते-जुलते चेहरे वाले साल्वर को सेट करते हैं। उनके रहने-खाने से लेकर सेंटर तक पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी होती है। जरूरत पर काउंसिलिंग भी कराते हैं।

तीसरा स्तर : छात्र और साल्वर के फोटो की मिक्सिंग करने के साथ ही एडमिट कार्ड पर साल्वर का स्कैन फोटो चस्पा करवाया जाता है। अभ्यर्थी का फार्म भी यही भरवाते हैं। चौथा स्तर : इनके जिम्मे तकनीकी कार्य होते हैं। यह लेन-देन तय करता है। यहां तक कि परीक्षा से पहले किस छात्र को कहां भेजना है, इसकी जानकारी सिर्फ इन्हीं के पास होती है। पांचवां स्तर : कौन साल्वर कितनी बार सफल रहा, उनसे डील करने की जिम्मेदारी इनके पास ही होती है। भुगतान और पकड़े जाने पर जमानत दिलाने की व्यवस्था भी ये ही करते हैं।

Source : Dainik Jagran

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