स्वास्थ्य विभाग ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार को लेकर पदों की स्वीकृति तो काफी तेजी से कर दी किंतु उन पदों पर नियुक्ति करना भूल गया। इस कारण स्वास्थ्य व्यवस्था बेहाल है। संविदा के तहत नियुक्ति कर इसकी भरपाई की कोशिश की जाती है, लेकिन वह भी नाकाफी साबित हो रही है।

चिकित्सा, नर्सिंग, स्वास्थ्य जागरूकता सहित सभी क्षेत्रों में मानव संसाधन की कमी का गंभीर असर हो रहा है। ये हाल तब है जब स्वास्थ्य विभाग का वार्षिक बजट बढ़कर 2019-20 में 9622.76 करोड़ रुपये है। इनमें राजस्व मद में 7693.06 करोड़ एवं पूंजीगत मद में 1929.70 करोड़ रुपये खर्च किया जाना है। स्वास्थ्य विभाग के तहत नियमित डॉक्टरों के 7249 पद स्वीकृत हैं, जबकि 3146 यानी 43 फीसदी  ही कार्यरत हैं। यानी आधे से भी कम डॉक्टरों के भरोसे राज्य  की चिकित्सा व्यवस्था चल रही है। इनमें भी औसतन सौ डॉक्टर प्रतिमाह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी लंबे समय से डॉक्टरों की नियमित नियुक्ति की मांग करता रहा है, किंतु अब तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।

नर्सिंग की स्थिति भी खराब 

चिकित्सा के साथ ही राज्य में नर्सिंग की स्थिति भी बेहद खराब है।
– ग्रेड ए नर्स : स्वीकृत पद 4704, कार्यरत 2096

– एएनएम : स्वीकृत पद 21 हजार 859 , कार्यरत 12 हजार 134

ग्रामीण स्तर पर 

प्रारंभिक सुविधा प्रदान करने को तैनात आशा के 93 हजार 687 पद स्वीकृत हैं, जबकि इनमें 87 हजार 424 कार्यरत हैं।

संविदा पर नियुक्ति  

– संविदा के तहत डॉक्टरों के स्वीकृत पद 2314, कार्यरत 533 हैं।

– ग्रेड ए नर्स के स्वीकृत पद 1719, कार्यरत 412

– एएनएम के स्वीकृत पद 12 हजार 587 और कार्यरत 6867

नीति आयोग की रैंकिंग में भी फिसड्डी रहा था विभाग 

हाल में नीति आयोग ने स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर राज्यों की जारी रैंकिंग में विभिन्न मानकों में बिहार को फिसड्डी बताया है। इसके तहत बिहार में प्रति हजार शिशु जन्म पर 2017-18 में नवजात शिशु मृत्यु दर 27 है। पड़ोसी राज्य झारखंड में 21 व पश्चिम बंगाल में सिर्फ 17 है। टीकाकरण 89.74 प्रतिशत है जबकि झारखंड में सौ फीसदी तो पश्चिम बंगाल में 95.85 है।

अगले छह माह में सर्विस डिलिवरी से संबंधित सभी पदों को भरने की कार्ययोजना तैयार की गयी है। डॉक्टरों के लिए खुला साक्षात्कार अगस्त महीने से शुरू होगा। पूर्व में चयनित डॉक्टरों को पदस्थापित किया जा रहा था।

– मनोज कुमार, अपर सचिव, स्वास्थ्य विभाग सह कार्यपालक निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति

Input : Hindustan

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