नवादा के नारदीगंज प्रखंड की डोहड़ा पंचायत के मोतनाजे गांव के बाशिंदे शाकाहारी हैं। गांव के किसी भी घर में मांस-मछली लेकर प्रवेश करना वर्जित है। यहां सदियों से ये परंपरा कायम है। अब नई पीढ़ी भी पुरखों की व्यवस्था को जिंदा रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। तकरीबन एक हजार की आबादी वाले इस गांव में 70 से 80 घर हैं। यहां पिछड़े तबके के बाशिंदे रहते हैं, लेकिन इनकी सोच उन्नत है।

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इसकी मूल वजह अधिकांश लोगों का शिक्षित होना और अधिसंख्य का नौकरीपेशा होना है। राजगीर की पहाड़तली में बसा यह गांव प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन आठ किमी. दूर टापू पर बसा है यह गांव ।

सात पीढिय़ों पुरानी है यह परंपरा

इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोग जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रुस्तमपुर के निवासी हैं। सात पीढ़ी पूर्व से ही शाकाहारी भोजन की परंपरा चली आ रही। ग्रामीण बताते हैं कि बिट्रिश हुकूमत में इस इलाके के जमींदार वाराणसी के किशोरी रमन थे।

हमारे पूर्वज स्व. चमन दास के पुत्र स्व. मांगो दास व स्व. मोहनदास के पुत्र स्व. भीमदास थे। मांगो दास अजानबाहू थे। जिले में कोई भी पहलवान उन्हें टक्कर देने वाला नहीं था। उन लोगों ने गरीबों के उत्थान के लिए आंदोलन चलाया था। वे कहा करते थे कि स्वस्थ व स्वच्छ रहना है, समाज से बुराई व आतंक को दूर करना है तो मांसाहारी भोजन का परित्याग करना होगा। सात्विक भोजन करो, तभी किसी भी जंग को जीत सकते हो। तब से गांव के लोग सात्विक हो गए।

सजा के तौर पर यहां आकर बसे 

ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों के समय में समाज सुधार को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध जंग छिड़ी तो जमींदारों से भी बगावत करनी पड़ी थी। इससे अंग्रेज व जमींदार काफी नाराज हुए। बगावत करने पर काला पहाड़ (राजगीर की पहाड़तली) व जंगल में रहने की सजा मिली। एक ओर पहाड़ व जंगल था तो दूसरी ओर पंचाने नदी।

 

ग्रामीणों ने बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया। बच्चों को पढ़ा-लिखाकर शिक्षित व सभ्य बनाने में लगे। आज भी ग्रामीण व उनके वंशज अपने पूर्वज मांगो दास व भीम दास की श्रद्धा व उत्साह के साथ पूजा करते हैं। इस गांव की दूसरी खासियत है कि बोङ्क्षरग व चापाकल से गर्म जलधारा निकलती है। जैसे कि राजगीर के गर्मकुंड की जलधारा में है।

ग्रामीण सुरेंद्र यादव ने कहा

गांव में किसी के घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनता है। अगर कोई बाहरी व्यक्ति या रिश्तेदार मांस खाकर गांव में प्रवेश करते हैं तो उन्हें स्नान करने के बाद ही घर में प्रवेश मिलता है। पूर्वजों के संस्कार का नतीजा है कि सभी खुशहाल हैं।

Input : Dainik Jagran

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