स्वच्छ गंगा, निर्मल गंगा, क्लीन गंगा न जाने कितनी बातें, कितने वायदे और कितनी योजनाएं आपने गंगा की सफाई को लेकर सुनी होंगे, लेकिन इन सबका नतीजा वही ढाक के तीन पात. जी हां, आपकी गंगा, हमारी गंगा अब बस कहने को गंगा है, क्योंकि इसके मूल स्वरुप में परिवर्तन हो चुका है.

दरअसल, गंगा के पानी (Ganga Water) की गुणवत्ता को जांचने के लिए हमारी टीम ने रियलिटी चेक किया. इसके लिए हमने शहरी क्षेत्र से दूर पटना के ग्रामीण इलाकों से गंगा के सैंपल इकट्ठा किए. एक सैंपल पटना शहर से आगे 28 किलोमीटर दूर मनेर क्षेत्र से लिया गया तो दूसरा सैंपल पटना शहर से 28 किलोमीटर दूर फतुहा इलाके से लिया. गंगाजल की क्वालिटी को लेकर किए गए रियलिटी टेस्ट की मुहीम में हमारी मदद पटना एएन कॉलेज के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टेमेंट की टीम ने की, जिसने इक्टठा किए गए सैंपल की जांच रिपोर्ट वादे के मुताबिक 72 घंटे बाद उपलब्ध करा दी.

यहां आपको यह भी बता दें कि ये टेस्ट WHO के पैमाने पर किए गए. जांच के जरिये जो नतीजे सामने आये उसके मुताबिक गंगा पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं बची है.

पटना में गंगा हो चुकी है प्रदूषित. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
यहां आपको यह भी बता दें कि ये टेस्ट WHO के पैमाने पर किए गए. जांच के जरिये जो नतीजे सामने आये उसके मुताबिक गंगा पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं बची है.
पटना: स्वच्छ गंगा, निर्मल गंगा, क्लीन गंगा न जाने कितनी बातें, कितने वायदे और कितनी योजनाएं आपने गंगा की सफाई को लेकर सुनी होंगे, लेकिन इन सबका नतीजा वही ढाक के तीन पात. जी हां, आपकी गंगा, हमारी गंगा अब बस कहने को गंगा है, क्योंकि इसके मूल स्वरुप में परिवर्तन हो चुका है.

दरअसल, गंगा के पानी (Ganga Water) की गुणवत्ता को जांचने के लिए हमारी टीम ने रियलिटी चेक किया. इसके लिए हमने शहरी क्षेत्र से दूर पटना के ग्रामीण इलाकों से गंगा के सैंपल इकट्ठा किए. एक सैंपल पटना शहर से आगे 28 किलोमीटर दूर मनेर क्षेत्र से लिया गया तो दूसरा सैंपल पटना शहर से 28 किलोमीटर दूर फतुहा इलाके से लिया. गंगाजल की क्वालिटी को लेकर किए गए रियलिटी टेस्ट की मुहीम में हमारी मदद पटना एएन कॉलेज के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टेमेंट की टीम ने की, जिसने इक्टठा किए गए सैंपल की जांच रिपोर्ट वा दे के मुताबिक 72 घंटे बाद उपलब्ध करा दी.

यहां आपको यह भी बता दें कि ये टेस्ट WHO के पैमाने पर किए गए. जांच के जरिये जो नतीजे सामने आये उसके मुताबिक गंगा पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं बची है.

जांच रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट तौर पर निकलकर सामने आयी कि गंगा के पानी में बैक्टिरियल ग्रोथ है. आमतौर पर 50 एमपीएन बैक्टीरिया लेवल को पीने योग्य पानी माना जाता है और 500 एमपीएन बैक्टीरिया वाले पानी का इस्तेमाल आप नहाने के लिए कर सकते हैं. लेकिन गंगा के दोनों सैंपल में बैक्टीरिया पाए गये वो भी मानक से कई गुणा ज्यादा. दोनों जगहों के पानी में 1600 एमपीएन से अधिक बैक्टीरिया पाया गया.

एएन कॉलेज के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टेमेंट और जी मीडिया की जांच में गंगाजल में जो बैक्टीरिया पाए गए वो हमारे लिए बहुत ही हानिकारक और जानलेवा है. इस पानी के सेवन से इकोलाई नामक बैक्टीरिया से डायरिया, मूत्र नली में संक्रमण, सांस की तकलीफ जैसी बीमारी हो सकती है. वहीं, सालमोनेला एंटेरिका से टॉयफायड, फूड प्वाइजनिंग, गैस्ट्रो प्रॉबलम जैसी बीमारी हो सकती है. वहीं, एंट्रोकॉकस फेकालिस से मूत्र नली में संक्रमण, वाउंड इन्फेक्शन हो सकता है. कलेबसिला पेन्यूमोनिया बैक्टीरिया से मूत्र नली में इन्फेक्शन, स्कीन इन्फेक्शन और बुखार हो सकता है.

एक वक्त था जब गंगा का पानी 20 साल भी बंद बोतल में रखने पर खराब नहीं होता था. उसके पीछे वजह थी गंगा में पाया जाने वाला बैक्टीरियोफॉजिल, जो किसी भी बैक्टीरिया को खत्म कर देता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि अनट्रीटेड पानी गंगा में डाला जा रहा है. जाहिर सी बात है कि गंगा अब इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि वो अपने मूल स्वरुप को ही खो चुकी है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पटना तक पहुंचने वाली गंगा में गंगा का प्रतिशत बस नाम मात्र का ही है.

Input : Zee Media

Muzaffarpur Now – Bihar’s foremost media network, owned by Muzaffarpur Now Brandcom (OPC) PVT LTD