बिहार में बेटियां पढ़ तो रही हैं, पर अधिकारों के लिए लड़ नहीं पा रहीं। सवाल चाहे आर्थिक आजादी का हो या घर चलाने का। आधी आबादी का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा आज भी चूल्हा-चौका और चारदीवारी को अपनी तकदीर माने बैठा है। चौंकाने वाली बात यह है कि 53 फीसद महिलाओं को कुछ परिस्थितियों में पति की पि’टाई में कोई बु’राई नहीं दिखती।
इतना ही नहीं, राज्य में 43 फीसद लड़कियों की शादियां आज भी ‘बाल विवाह’ हैं। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीटयूट (ADRI), इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (International Growth Centre) और जेंडर रिसोर्स सेंटर (Gender Resource Centre) द्वारा हाल ही में पटना में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों के शोधपत्र (Research Paper) में यह जानकारी दी गई है।
सर्वेक्षण और तथ्यों के आधार पर तैयार यह शोधपत्र स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसर पर केंद्रित है। शोधपत्रों के विश्लेषण के बाद चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। राज्य में चलाई जा रही साइकिल, पोशाक, कन्या सुरक्षा जैसी सशक्तीकरण की योजनाओं से बेटियां शिक्षित तो हो रही हैं, पर ब्याह के बाद अधिकांश की तकदीर में चूल्हा-चौका और चारदीवारी ही है।
एक चौथाई की घर चलाने में नहीं चलती अपनी मर्जी
आंकड़े के अनुसार ब्याह के बाद 25 फीसद महिलाएं घर चलाने को लिए जाने वाले निर्णयों में अपनी राय भी नहीं रख पातीं। महज 33 फीसद महिलाएं ही भाग्यवान होती हैं, जिन्हें कुछ पैसे अपनी मनमर्जी से खर्च करने की आजादी होती है।
पांच फीसद को माइक्रो क्रेडिट प्रोग्राम के तहत ऋण
जन धन योजना में महिलाओं के बैंक खाते तो खूब खुले, पर मात्र 26 फीसद ही ऐसी हैं जो खातों का उपयोग मर्जी से कर पाती हैं। राज्य की पांच फीसद महिलाओं को ही माइक्रो क्रेडिट प्रोग्राम के तहत ऋण मिला है।
आज भी 43 फीसद महिलाओं का बाल विवाह
बाल विवाह रोकने के लिए बिहार सरकार ने अभियान चला रखा है। बावजूद इसके जो आंकड़ा विशेषज्ञों ने बताया है, उसके अनुसार राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा संख्या में बाल विवाह बिहार में हो रहे हैं। राज्य में सौ शादियों में से 43 आज भी बचपन में हो रही हैं। जबकि, राष्ट्रीय औसत 27 फीसद है।
Input: Daink jagran