पटना. जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे चुनाव लड़ने (Contest Election) की इच्छा रखने वाले राजधानी पटना (Patna) का चक्कर लगाने लगे हैं. चुनाव मैदान में उतरने की चाहत के चलते यह सभी अपने मनपसंद पार्टियों (Political Parties) के नेताओं की ‘गणेश परिक्रमा’ कर रहे हैं. कोई आम की टोकरी लेकर पहुंच रहा है, तो कोई मिठाई का बड़ा पैकेट लेकर जा रहा है. वहीं कुछ फूलों के बड़े-बड़े गुलदस्ते अपने प्रिय नेता को सौंप रहे हैं. साथ ही उनको अपनी अर्जी भी दे रहे हैं कि इस बार चुनाव में उन्हें आजमाया जाए.

अपनी-अपनी मनपसंद की पार्टियों के दफ्तर में दस्तक दे रहे 

राज्य के अन्य जिलों से पटना पहुंच रहे नेताओं की पहली पसंद सत्तारूढ़ दल है. वो जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) और बीजेपी को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. इसकी वजह है कि यह दोनों पार्टियां सत्तारूढ़ हैं. जेडीयू की बिहार में तो बीजेपी की केंद्र में भी सरकार है. ऐसे में ज्यादातर नेता बीजेपी दफ्तर और जेडीयू दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं. वहीं वीरचंद पटेल पथ स्थित आरजेडी कार्यालय को छोड़ नेता राबड़ी देवी के आवास पर भीड़ लगा रहे हैं. साथ ही उनके प्रमुख नेताओं से मिलकर अपना बायोडाटा सौंप रहे हैं. इसमें जाति विशेष पार्टियों के दफ्तर में भी जाति विशेष के नेता पहुंच रहे हैं.

इन नेताओं के पास सबसे ज्यादा भीड़

बिहार के कई ऐसे प्रमुख नेता हैं जिनके एक आवाज पर खूब भीड़ लगती है. जेडीयू की तरफ से आरसीपी सिंह, राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के यहां टिकट की आस पालने वाले कई लोग पहुंच रहे हैं. साथ ही अपने जिले से सौगात भी ला रहे हैं. वहीं यदि एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान पटना में होते हैं तो उनके आवास पर भी खूब भीड़ इकट्ठा होती है. जबकि आरजेडी में फरियाद लगाने के लिए नेता सीधे राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचते हैं और तेजस्वी यादव से मिलते हैं. यदा-कदा यदि राबड़ी देवी मिल जाती हैं तो उनके सामने भी अपने मन की बात का इजहार करते हैं. बीजेपी की बात करें तो पार्टी के नेता कार्यालय में बैठते हैं लेकिन इनका कमांड हेडक्वार्टर दिल्ली में है. ऐसे में यहां फरियाद लगाने के बाद नेता सीधे दिल्ली पहुंच जा रहे हैं. कांग्रेस का भी कमोवेश कुछ यही हाल है.

गणेश परिक्रमा करने वाले हर नेता के अपने-अपने दावे

दूसरे जिलों से आए नेता इस दौरान अपने आप को क्षेत्र का प्रभावी नेता बताने से पीछे नहीं हटते. कोई यह दावा करता है कि वो पार्टी से 20 से 30 साल से जुड़ा हुआ है. इसलिए उस क्षेत्र का विधानसभा चुनाव का टिकट उसे ही मिलना चाहिए. वहीं कुछ ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो स्थानीय निकाय से भी पहुंचते हैं, मसलन मुखिया, सरपंच या वार्ड पार्षद, इनका दावा होता है कि इन्होंने अपने क्षेत्र में बहुत काम किया है तो इन्हें चुनाव टिकट मिलना चाहिए. जबकि कुछ नेता अपना जातीय समीकरण बताते हैं. तो कुछ अपने आप को उस क्षेत्र का सबसे प्रभावशाली चेहरा मानते हैं.

इसमें सफलता का चांस काफी कम होता है

चुनावी मौसम में जिलों से आए नेताओं से पटना में बड़े नेता मिल रहे हैं और उनका भेंट भी स्वीकार कर रहे हैं. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का फैसला दिल्ली से होना है. तो वहीं आरजेडी के लिए लालू यादव अधिकृत हैं. जेडीयू के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तो एलजेपी के लिए रामविलास पासवान फैसला लेते है. ऐसे में बड़े नेताओं की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद गणेश परिक्रमा करने वाले यह नेता सीधे आलाकमान की तरफ रुख करते हैं. हालांकि इसमें कामयाब होने का प्रतिशत काफी कम होता है. क्योंकि पहले से ही वर्तमान विधायक, पूर्व विधायक उन सीटों पर नजरें टिकाए होते हैं.

Input : News18

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