प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी के साथ भेजने का निर्णय क्या नीतीश कुमार का बदला है? या यह बीजेपी को बैकफुट पर रखने की रणनीति का हिस्सा है? या वह बीजेपी से अलग होने का रास्ता ढूंढ रहे हैं ?

 

जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC अब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के लिए सेवा देने जा रही है. यह भी एक तथ्य है कि ये फैसला लेने से पहले प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से दो बार मुलाकात की थी. जिस तरह से जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने प्रशांत किशोर के फैसले का समर्थन किया है, इससे जाहिर है कि नीतीश कुमार ने ही इसके लिए परमिशन दी है. यह भी साफ है कि पश्चिम बंगाल में पीके बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाएंगे. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर जेडीयू अपने ही पार्टी के नेता को बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए क्यों आगे कर रहे हैं?

केंद्रीय मंत्रिपरिषद से अलग रहने के जेडीयू के फैसले के बाद प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी के साथ भेजने का निर्णय क्या नीतीश कुमार का बदला है ? या फिर यह बीजेपी को बैकफुट पर रखने की रणनीति का हिस्सा है? या वह बीजेपी से अलग होने का रास्ता ढूंढ रहे हैं ?

राजनीतिक जानकारों की राय में नीतीश कुमार ने ये सब काफी सोच समझकर किया है. यह तय है कि वह आज नहीं तो कल बीजेपी से अलग होंगे, लेकिन इसके लिए वक्त का इंतजार किया जा रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष कहते हैं कि फिलहाल नीतीश कुमार ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चल रहे हैं, लेकिन उन्हें पता है कि आने वाले समय में बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी राजनीतिक ताकत अधिक कारगर साबित हो सकती है.

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं होकर और मांझी से नजदीकियां बढ़ाकर उन्होंने जो संकेत दिए हैं ये इसी ओर इशारा करती हैं. वहीं, आरजेडी ने उन्हें ऑफर देकर यह तो जाहिर कर ही दिया है कि पार्टी नीतीश कुमार के साथ आने को तैयार है.

बकौल अरुण अशेष नीतीश कुमार को जहां 2014 में अकेले लड़ने से अपनी कम ताकत का अहसास हो चुका है, वहीं 2015 में आरजेडी के साथ आकर बीजेपी को धूल भी चटाने की शक्ति मालूम है. ऐसे में वह एक और चांस ले भी सकते हैं.

दरअसल, नीतीश कुमार को मालूम है कि वर्तमान केंद्र सरकार कश्मीर में अनुच्छेद-370, 35 ए और राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दों से पीछे नहीं हटने वाली है. ऐसे में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं होने की नीति यही बताती है कि मोदी सरकार अगर इस ओर आगे बढ़ती है तो वह अलग राह पकड़ सकते हैं.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर का मानना है कि फिलहाल बीजेपी नीतीश कुमार की बातों को न तो गंभीरता से ले रही है और न ही उन्हें ज्यादा तवज्जो देना चाह रही है. वह ये भी देखना चाहती है कि नीतीश कुमार किस तरह की रणनीति अपनाते हैं.

बकौल मणिकांत ठाकुर केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उपेक्षित होने के बाद सीएम नीतीश कुमार को एसेंबली इलेक्शन में किस तरह का बंटवारा होगा, इसको लेकर शंका ने घेर रखा है. यही नहींं बीजेपी ने जिस तरह से ‘डोंट केयर’ का मूड दिखाया है, यह तो नीतीश कुमार ने सोचा भी नहीं होगा.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि यह मनमुटाव भी एक हद तक तल्खी के बाद आगे नहीं बढ़ेगा. इसलिए जेडीयू-बीजेपी के बीच अलगाव की खबरें कुछ दिन तक चलेंगी. लेकिन, जब अनुच्छेद-370, 35 ए और राम मंदिर मुद्दे की बात आएगी तो वह निर्णायक पल होगा.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि जेडीयू अगर इन मुद्दों पर सरेंडर करती है तो यह राजनीतिक मौत होगी. लेकिन, यह भी हकीकत है कि तब जनता का सेंटिमेंट बीजेपी की ओर शिफ्ट हो सकता है. ऐसे में जेडीयू के लिए दुविधा की स्थिति जरूर होगी.

वहीं, बीजेपी यह जानती है कि जेडीयू भी अब पहले जैसी विश्वसनीय घटक नहीं रह गई है. बावजूद इसके पार्टी जेडीयू के लिए हर फ्रंट नहीं खोलना चाहती है. हालांकि, नीतीश कुमार ने भी मांझी से नजदीकियां बढ़ाकर और बिहार मंत्रिपरिषद विस्तार में 75 प्रतिशत अति-पिछड़े, पिछड़े और दलितों को हिस्सेदारी देकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है.

बकौल मणिकांत ठाकुर आने वाले समय में कुछ ऐसे इश्यू भी हैं जो इतने बड़े हो जाएंगे कि उन्हें संभालना दोनों ही पार्टियों के लिए कठिन होगा. ऐसे में नीतीश कुमार उन मुद्दों से पीछे हटेंगे भी नहीं क्योंकि वे यह गुंजाइश भी रखना चाहते हैं कि आने वाले समय में कोई नेशनल फ्रंट बने तो यह उनके लिए मुफीद हो.

Input : News18

 

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