बीआरए बिहार विवि अपने अजीबोगरीब कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहा है। अब नया मामला रजिस्ट्रेशन शुल्क से जुड़ा है। कहा जा रहा है कि तत्काल इसकी जांच हो तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।

स्नातक थर्ड पार्ट के छात्रों का बड़ी संख्या में रिजल्ट फंसने पर रजिस्ट्रेशन का यह खेल सामने आया है। पता चला है कि कुछ छात्रों ने बिना रजिस्ट्रेशन के ही परीक्षा दे दी है। इस प्रकार रजिस्ट्रेशन शुल्क मद की राशि व्यक्ति विशेष की जेब में चली गई। 2012 से ही यह खेल चल रहा है।

वाकया सामने आने के बाद अंदर ही अंदर छानबीन शुरू हो गई है मगर कोई मुंह नहीं खोल रहा। इस बीच सूत्रों का दावा है कि विश्वविद्यालय के रजिस्टर में छात्रों से ली गई राशि जमा हीं नहीं हो पाई। उस दौरान का रजिस्टर भी खाली है। अब बड़ा सवाल है कि अगर ऐसा है तो अब तक यह मामला जांच में पकड़ में आया कैसे नहीं और अहम यह भी कि बिना रजिस्ट्रेशन वाले छात्रों का रिजल्ट कैसे होता रहा है। प्रस्तावित व संबद्ध कॉलेजों के छात्रों के साथ अधिकतर ये गड़बड़ी हुई बताई जाती है।

यह मामला सीधे-सीधे विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग से जुड़ा है। परीक्षा नियंत्रक डॉ. मनोज कुमार ने इस मामले में जानकारी होने से इन्कार किया। वहीं रजिस्ट्रेशन सेक्शन के प्रभारी रामअनेक ठाकुर ने सिर्फ इतना कबूल किया कि इक्के-दुक्के ही वैसे मामले होंगे।

 

कहा कि छात्र जब सीएलसी लेकर माइग्रेशन के लिए आते हैं तो उनसे रजिस्ट्रेशन स्लीप की मांग की जाती है। मगर, वे छात्र कहते हैं कि कॉलेज से उन्हें रजिस्ट्रेशन स्लीप मिला ही नहीं। ठाकुर यह भी स्वीकार करते हैं कि बिना रजिस्ट्रेशन नंबर के वैसे छात्र परीक्षा कैसे दे पाए यह वाकई हैरान करने वाली बात है।

थर्ड पार्ट में बिना रजिस्ट्रेशन माक्र्सशीट इश्यू हो गया है। छात्रों ने देखा कि जो रिजल्ट हाथ में है उसमें रजिस्ट्रेशन नंबर ही अंकित नहीं है। सुधार के लिए टेबुलेटर के पास पहुंचे। टेबुलेटर ने चेक करना शुरू किया तो पता चला कि अमूक छात्र का रजिस्ट्रेशन पार्ट वन व टू में भी अंकित नहीं है। लिहाजा, उन्होंने रिजल्ट ही रोक दिया। अब छात्र विश्वविद्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। कुछ छात्रों से दोबारा रजिस्ट्रेशन शुल्क लिया जा रहा है। इस प्रकार सौ रुपये शुल्क के और उतने ही दंड यानी दो सौ रुपये सालाना के हिसाब से छह सौ रुपये लेकर रजिस्ट्रेशन नंबर इश्यू किए जा रहे हैं।

हालांकि, यह बात उपर तक जा पहुंची है। अंदर ही अंदर जांच चल भी रही है मगर बदनामी के भय से जवाबदेह पदाधिकारी बोलने से कतरा रहे हैं।

बगैर रजिस्ट्रेशन नंबर के उत्तीर्ण छात्र को सीएलसी और प्रमाणपत्र भी उपलब्ध होना यह साबित करता है कि इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। इसका खामियाजा उन छात्रों को भुगतना पड़ता है परीक्षा पास करने के बावजूद प्रमाणपत्रों की जांच में पिछड़ जाते हैं और नतीजतन उनका कॅरियर दाव पर लग जाता है। बिना रजिस्ट्रेशन के ही डिग्री बांटने का भी यह मामला हो सकता है। कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालय की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा हो रहा है।

Input : Dainik Jagran

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