समस्त देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य गणेश के आठ प्रमुख अवतार हैं- वक्रतुण्ड, एकदंत, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज और धूम्रवर्ण। इन अवतारों में जहां गणेशजी के हाथों राक्षसों के वध की बजाय उन्हें शरण में लेने का अद्भुत विवरण मिलता है, तो वहीं यह भी साफ-साफ नजर आता है कि इन अवतारों के दौरान जिन-जिन राक्षसों के साथ गणेशजी का युद्ध हुआ, वे सब देवताओं की कमजोरियों से ही पैदा हुए। मानव में जब ये कमजोरियां उजागर होती हैं, तो महाभारत होता है, सीता हरण होता है।
अपने वक्रतुण्ड अवतार में गणेशजी ने स्वर्ग के राजा इंद्र के प्रमाद अर्थात उन्माद से जन्मे मत्सरासुर से उस समय मुकाबला किया, जब उसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य के बताए मंत्र से भगवान शिव से भयहीन होने का वरदान प्राप्त कर लिया था।
खुद इंद्र भी उससे युद्ध में उसी तरह पराजित हुए, जिस तरह ब्रह्मा, विष्णु और शिव। ऐसे ही एक बार तारकासुर से दुखी देवताओं ने कामदेव के सहयोग से शिव की समाधि भंग करने के लिए माता पार्वती को खूबसूरत युवा भीलनी का रूप धारण कर समाधि स्थल पर भेजा। समाधि टूटी, लेकिन शिव जी को लुभाने वाली भीलनी एक झलक दिखाकर गायब हो गई। तब भगवान शिव के मोह से मोहासुर राक्षस पैदा हुआ। तब महोदर रूप में गणेश ने मोहासुर को अपनी शरण में लिया।
शिव के परम मित्र कुबेर उनके दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत जा पहुंचे। माता पार्वती की सुंदरता को एकटक निहारने के कारण कुबेर पर माता पार्वती ने कोप किया। कुबेर भयभीत हो उठे, जिसके कारण लोभासुर नामक राक्षस का जन्म हुआ। गजानन अवतार में इसी लोभासुर से युद्ध किया था गणेशजी ने।
लंबोदर अवतार में गणेशजी का मुकाबला जिस राक्षस से हुआ था, उसका नाम क्रोधासुर था। शिव क्रोधित हो उठे, जिससे इस राक्षस का जन्म हुआ। विष्णु से कामासुर राक्षस पैदा हो गया। विकट अवतार में गणेश ने कामासुर राक्षस को अपनी शरण में लिया।
विघ्नराज अवतार में तो गणेशजी को उस ममतासुर से युद्ध करना पड़ा, जो माता पार्वती के हंसने से उस समय पैदा हुआ था, जब वह शिवजी से जिद अर्थात मान किए बैठी थीं। ऐसे ही एक बार सूर्य भगवान को ब्रह्मा जी ने कुछ समय के लिए सारे अधिकार सौंप दिए। इससे उनमें अहंकार पैदा हो गया, उसी दौरान उनकी छींक से अहंतासुर राक्षस पैदा हो गया। धूम्रवर्ण के रूप में इसे भी गणेशजी ने अपनी शरण में लिया।
Input : Hindustan