मकर संक्रांति कल गुरुवार को मनाई जाएगी। पुण्यकाल संक्रांति के 16 घटी पूर्व और 16 घटी बाद तक होता है। इस कारण 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति पर्व मानाया जाएगा। स्नान, दान, जप, तप, यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के लिए पुण्यकाल सुबह 8:18 बजे से शुरू होगा। महापुण्यकाल 8:30 बजे सुबह से 10:17 बजे तक और पुण्यकाल 14 जनवरी की संध्या तक रहेगा। आत्यात्मिक गुरु सह प्रसिद्ध ज्योतिष पं.कमला पति त्रिपाठी प्रमोद ने यह बताते हुए कहा कि समस्त विद्वतजनों का इस संबंध में एकमत है।
उन्होंने कहा कि पुण्यकाल में स्नान, दान, जप, तप, अनुष्ठान, हवन करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आदिशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महॢषयों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व
पं.कमलापति त्रिपाठी ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं। इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते है। इसलिए इस अवसर पर गंगा स्नान व दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस त्योहार का निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व मकर संक्रांति व देवदान पर्व के नाम से जाना जाता है।
- Input: Dainik Jagran