बिहार में यादव लैंड के नाम से विख्यात मधेपुरा में मतगणना के दौरान दो धुरंधर नेता पीछे चल रहे हैं. इस सीट पर शुरुआती रुझानों में पप्पू यादव और शरद यादव दोनों ही जेडीयू के दिनेश यादव से पीछे चल रहे हैं. इस सीट पर पप्पू यादव ने 2014 में कब्जा जमाया था.
पप्पू यादव का सफर
पप्पू यादव का नाम सुनते ही आमतौर पर लोगों के मन में एक बाहुबली की छवि बनती है. बिहार के मधेपुरा सीट से लोकसभा सांसद पप्पू यादव हमेशा अपने बयानों को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं. बाहुबल से पॉलिटिक्स में आने वाले पप्पू को किसी जमाने में लालू की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी माना जाता था. लेकिन, आज पप्पू यादव लालू और उनकी पार्टी राजद के लिए ‘बैड एलिमेंट’ बन चुके हैं. पप्पू बिहार से तिहाड़ तक का सफर तय कर चुके हैं.
बिहार के मधेपुरा से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने अपनी बिहार से तिहाड़ की यात्रा यानी पटना के बेऊर जेल से लेकर दिल्ली के तिहाड़ जेल में बिताए गए दिनों के अनुभव को विस्तार से एक किताब के तौर पर लिखा है. कहा जाता है कि पप्पू यादव संगीन आरोप में 17 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं.
अपने भारी भरकम शरीर और दबंगों वाली काया से भीड़ में अलग पहचान रखने वाले पप्पू इस बार भी लोकसभा के रण में हैं. लोकसभा चुनाव 2019 के तीसरे चरण में बिहार की जिन पांच सीटों पर 23 अप्रैल को मदतान होना है, उनमें पप्पू की सीट मधेपुरा भी है. मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के सांसद और जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के राष्ट्रीय संरक्षक राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव प्रत्याशी हैं जहां उनके सामने शरद यादव हैं. न्यूज 18 आपको बता रहा है पप्पू यादव से जुड़ी कुछ खास बातें.
दो दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव परबिहार के यादव लैंड कहे जाने वाले मधेपुरा सीट से दो दिग्जगों की प्रतिष्ठा दांव पर हैं, क्योंकि यहां एक तरफ पप्पू हैं तो उनके सामने देश के दिग्गज राजनीतिज्ञों में शुमार और जेडीयू से बगावत कर लालू खेमे में जा चुके शरद यादव. शरद इस सीट से महागठबंधन में आरजेडी के उम्मीदवार हैं. वह 90 का दशक था, जब पप्पू यादव अपराध की दुनिया में अपना नाम कमा रहे थे. कहा जाता है कि उन दिनों लालू यादव अपने राजनीतिक जीवन के चढ़ाव पर थे और बिहार में विरोधी दल के नेता बनाना चाहते थे. उस समय लालू को उनके मकसद को कामयाब करने में जिस शख्स ने सबसे ज्यादा मदद की थी वो शख्स पप्पू यादव ही थे.
यही कारण है कि पप्पू अपने आप को लालू का उत्तराधिकारी मानते थे ये बात अलग है कि पप्पू की ये मंशा पूरी नहीं हो सकी. यही कारण है कि पप्पू यादव लगातार खुले मंच से आरोप लगाते रहे हैं कि लालू ने उन्हें अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल किया. पप्पू यादव उस वक्त चर्चा में आए थे जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक अजित सरकार की 14 जून, 1998 को पूर्णिया में अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी.
इस मामले की जांच के दौरान आंच पप्पू यादव तक गई. चुकि मामला हाई प्रोफाइल था सीबीआई को सौंपी गई. मामले की जांच के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने 2008 में इस हत्याकांड में पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में पटना हाईकोर्ट ने 2008 में पप्पू को रिहा कर दिया था.
पहले विधायक फिर सांसद
पप्पू यादव ने अपने करियर की शुरुआत विधायक के तौर पर की. पप्पू यादव ने 1990 में सिंहेश्वरस्थान, मधेपुरा से विधानसभा का चुनाव लड़ा और चुन लिए गए. वो साल 1991 था जब उन्होंने पूर्णिया से 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद पप्पू कई पार्टियों से जुड़े. वो आरजेडी, समाजवादी पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते. पप्पू ने साल 1991, 1996, 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीता. मई 2015 में आरजेडी से पप्पू यादव को निकाल दिया गया. पप्पू पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा.
राजद से निकाले जाने के बाद पप्पू ने अपनी नई पार्टी बनाई और नाम रखा जन अधिकार पार्टी. साल 2015 के चुनाव में पप्पू ने मधेपुरा का चुनाव जीता और इस बार भी वो न सिर्फ मैदान में हैं बल्कि अपनी जीत को लेकर दावा कर रहे हैं.
Input : News18