मुजफ्फरपुर । पंजाब के जालंधर और हरियाणा के गुडग़ांव से दो हजार से अधिक प्रवासियों को लेकर दो अलग-अलग श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सोमवार को मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचीं। प्रशासनिक व्यवस्था के बीच श्रमिकों की मेडिकल जांच व डिसइंफेक्शन का कार्य हुआ। फिर भोजन सामग्री देने के बाद श्रमिकों को बसों से उनके गंतव्य जिले के लिए भेजा गया।

काफी देर से पहुंची ट्रेन

जालंधर से चली विशेष ट्रेन में यात्रियों को पानी, बिस्कुट, चिप्स और केला खिलाकर ही मुजफ्फरपुर तक लाया गया था। लिहाजा, यहां भोजन मिलते ही प्रवासी टूट पड़े। इस ट्रेन को रविवार की रात मुजफ्फरपुर पहुंचना था। लेकिन यह ट्रेन सोमवार की सुबह सवा ग्यारह बजे मुजफ्फरपुर पहुंची। जबकि गुडग़ांव से चली ट्रेन दोपहर एक बजे के बदले शाम पांच बजे पहुंची। जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और रेलवे की टीम जंक्शन पर तैयारी के साथ मुस्तैद रही। जंक्शन की ओर से यात्रियों की सहायता के लिए लगातार उद्घोषणा होती रही।

कोरोना से पहले भूख से ही मर जाते

पंजाब के जालंधर शहर से एक हजार से अधिक प्रवासी मजदूरों और युवाओं को लेकर चली ट्रेन घंटों विलंब के चलते रविवार की रात के बदले सोमवार की सुबह मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंची थी। इसके साथ ही प्रवासी मजदूरों की खामोशी टूटी। घर वापसी का इंतजार करते थक चुकी आंखों में उम्मीदों की रोशनी चमकी। सफर की थकान के चलते थके चेहरों पर मुस्कान लौटी।

आंखों से आंसू छलक पड़े

प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के रुकते ही प्रवासियों की घर वापसी का लंबा इंतजार समाप्त हो गया। अंतहीन दर्द और खौफनाक यादें लेकर लौटे प्रवासियों ने अपनी व्यथा सुनाई। हालचाल पूछने पर कई प्रवासियों के आंखों से आंसू छलक पड़े। जालंधर में फेरी लगाकर जीवनयापन करने वाले बेगूसराय के राजू, रौशन, दीपक व अजय ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से केवल इंतजार कर रहे थे। पैसे खत्म हो गए थे। कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ा।

केवल शरीर लेकर लौटे

राजू ने बताया-क्या कहें साहब, कोरोना से तो बाद में मरते, भूख से पहले मर जाते। भला हो सरकार का, जिसने यहां तक पहुंचा दिया। कुछ ऐसे ही दर्दभरी दास्तान सुनाई जिले के पारू प्रखंड के कोठी गांव निवासी मुन्ना कुमार और रणधीर ने। जालंधर में मजदूरी कर जो रकम कमाई थी वह इन दो महीनों में खा गए। केवल शरीर लेकर लौटे हैं। घर लौटने की खुशी के साथ लॉकडाउन की पीड़ा का खौफ के साथ लौटे शहर से सटे मधुबन के मंजीत कुमार, संजीत कुमार, पूजा कुमारी, सुजीत कुमार, अनिल कुमार और संजय कुमार ने बताया कि जालंधर की एक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन का शुरुआती दौर इंतजार में कट गया। लेकिन यह इंतजार अंतहीन होता गया। दिन तो कट जाता था, लेकिन रात नहीं कट रही थी। इस ट्रेन से लौटे कुछ इंजीनियङ्क्षरग के छात्र भी थे। जिन्होंने कहा कि जान बच गई है।

अब कभी शहर नहीं जाऊंगा

साहेबगंज प्रखंड के रूप छपरा वार्ड एक निवासी राम बाबू राय अपनी पत्नी और चार छोटे-छोटे बच्चों को लेकर लौटे। कहा कि जिंदगी का सबसे भयानक मंजर रहा। जैसे-तैसे वक्त गुजरा है। अब यहां आने के बाद राहत मिली है। कहा-अब कभी शहर नहीं जाऊंगा।

Input : Dainik Jagran

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