महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम से अब जो स्लोगन फडणवीस सरकार के लिए सुर्खियां बटोर रहा है वह है ‘अबकी बार- खो दी सरकार’। रातों रातों हुए राजनीतिक उठा-पटक में देवेंद्र फडणवीस की सरकार एनसीपी के अजित पवार के समर्थन से बन तो गई लेकिन यह सरकार बहुमत के आभाव के चलते सुप्रीम कोर्ट के दिए गए तय समय में फ्लोर टेस्ट साबित करने से पहले ही गिर गई।
वैसे तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना का गठबन्धन था। वहीं कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यह चुनाव अपने दम पर लड़ रही थी। लेकिन शिवसेना के ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग ने इस पुराने गठबंधन को तोड़ दिया। अब कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना, ‘महाराष्ट्र महा विकास अघाड़ी’ मोर्चा के तहत सरकार बनाने जा रहे हैं जिसमे उद्धव ठाकरे को विधायक दल का नेता चुना गया है।
बीजेपी की राजनीति
कर्नाटक, गोवा, जम्मू-कश्मीर, बिहार आदि राज्यों में बीजेपी की राजनीति पर गौर करें तो यह लगता है की बीजेपी कि राजनीति जोड़-तोड़ की राजनीति भी रही है। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह इसमें माहिर रहे हैं। कर्नाटक, गोवा या फिर बिहार में सरकार गठन करने का काम हो, इसके पीछे शीर्ष संगठन का ही सबसे अधिक योगदान रहा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। इस बार महाराष्ट्र में बीजेपी की राजनीति का तोड़ बीजेपी की ही रणनीति से उसकी ही सहयोगी रही शिवसेना ने निकाला।
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और कांग्रेस के सहयोग ने इस रणनीति को फाइनल टच दिया। बीजेपी इस बार अपनी चाल में कामयाब नहीं हो पाई। और अब वह इस पर भले सफाई दे रही हो लेकिन उनके सफाई देने में बिहार का कनेक्शन आड़े आ जा रहा है।
बिहार में जब विधानसभा चुनाव हुआ था तब अप्रत्याशित रूप से नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी के बीच महागठबंधन हो गया था। दोनों की राजनीति कमोबेश एक दूसरे के विरोध पर थी। ठीक ऐसा ही जैसा गठबंधन अभी कांग्रेस का शिवसेना के साथ हुआ है। उस चुनाव में नीतीश और लालू के गठबंधन ने मिलकर बीजेपी को धूल चटा दी थी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ जिसमें लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव उप-मुख्यमंत्री और तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बने।
लेकिन बहुत जल्द ही नीतीश कुमार ने लालू यादव से गठबंधन तोड़कर बीजेपी से हाथ मिला लिया और फिर से अपने ही नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार बना डाली। बिहार में यही सरकार आज भी है। महाराष्ट्र के हालात आज वही हैं। जो सरकार गठन के बाद बीजेपी और जदयू ने लालू के साथ किया था वैसा ही अब बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में हुआ है। बिहार में अचानक से सरकार गिराकर लालू को सत्ता से बाहर किया गया था। अब महाराष्ट्र में एनसीपी के अजित पवार के हटने से सरकार गिरी है।
भाजपा का एनसीपी के अजित पवार से गठबंधन वैसा ही कहा जा सकता है जैसा लालू का नीतीश से गठबंधन कहा जाता है। इसलिए बीजेपी का यह आरोप तो सही है कि शिवसेना ने गठबंधन तोड़कर वादाखिलाफी की, लेकिन इसके अलावा उनके सारे आरोपों में वह धार नहीं दिखती है। बीजेपी ने भी अन्य राज्यों में बहुमत न होने के बावजूद सरकार बनाई है, वैसा ही अब महाराष्ट्र में हुआ है।
इसके अलावा भी और वजहें हैं
जम्मू कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी के महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाई थी जोकि उतनी ही धुर विरोधी पार्टी रही है जितनी शिव-सेना और कांग्रेस, राजद और जनता दल युनाइटेट आपस में रहे हैं। इन राजनीतिक गठजोड़ से यह दिखता है कि कोई भी दल किसी के भी साथ सरकार बना सकती है। दलों की विचारधारा की बहस बस जनता के बीच है।
जब सारी राजनैतिक पार्टियां खुद उस दलदल में हैं, तो कोई पार्टी अगर किसी अन्य पार्टी पर इस बात का तोहमत लगाती है तो उनकी बातों में वो धार बची नहीं रह जाती। यह बात भले कोई पार्टी राजनीतिक स्तर पर स्वीकार नहीं करे लेकिन इस बात को वह समझती तो है ही। इस बार की राजनीतिक उठा-पटक में बीजेपी इन्हीं वजहों से अपनी आक्रामकता में भी बेबस नजर आ रही है।
Input : OneIndia