संतान की सलामती व दीर्घायु होने के लिए इस बार शनिवार व रविवार को महिलाएं जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत रख रही हैं। पंडितों में मतभेद होने से दो तिथियों पर यह व्रत किया जा रहा है। मिथिला पंचाग को मानने वाली व्रतियों ने शुक्रवार को जिउतिया को लेकर नहाय-खाय किया। वहीं, बनारस पंचाग को मानने वाले शनिवार को नहाय-खाय करेंगे। रविवार के दिन व्रत रखने वाले की संख्या अधिक है। वहीं, खरजीतिया करने वाली महिलाएं दिनभर उपवास रख शाम को तारा देख अन्न-जल ग्रहण करेंगी।

 

व्रतियों ने नहाय-खाय के रस्म निभाते हुए भीगे कपड़े में झिगुनी के पत्ते पर खड़ी व तेल रख पितराइनों को चढ़ाया। खरी को अपने माथे पर लगाया। इसके बाद स्नान कर एक-दूसरे को सिन्दूर लगाया। पितराइनों से हाथ जोड़कर परिवार व संतान की सलामती का आशीर्वाद मांगा। इसके बाद दाल, चावल, नोनी का साग, मडुआ की रोटी, झिगुनी की सब्जी, मछली आदि पकवान बनाकर ग्रहण किया। व्रत की सुबह में व्रती ओठगन की रस्म करेंगी और दही-चूड़ा सरगी के तौर पर खायेंगी। इसके साथ 24 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होगा।

Input : Hindustan

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