ये बच्चों की मौत को काफी करीब से देखती हैं। मां की चीत्कार के दर्द को महसूस करती हैं। पिता को अंदर ही अंदर टूटते देखती हैं। लगता है कलेजा फट जाएगा। आंसू निकल आते हैं।

ये अनुभव हैं एसकेएमसीएच में बच्चों के लिए कहर बने एईएस पीडि़तों की सेवा कर रहीं प्रशिक्षु नर्स के। दिन-रात मौत के दर्द को महसूस करती हैं। बीमार बच्चों के पास मां को तड़पते देखती हैं। उसे बचाने के लिए पिता को भागते-दौड़ते देखती हैं।

जब से यह बीमारी बच्चों के लिए कहर बनी है, ड्यूटी में तैनात नर्स या बिना वेतन का काम करने वाली प्रशिक्षु नर्स अपनी जिम्मेदारी को इबादत समझ कर कर रही हैं। 12 से 16 घंटे तक ड्यूटी कर रही हैं। बच्चों की हालत पर भावुक होकर प्रशिक्षु नर्स करुणम कुमारी कहती हैं कि जिस दिन बच्चों की मौत हो जाती है, खाना नहीं खा पाती हूं।

देखभाल के बाद भी उनकी मौत अंदर से तोड़ देता है। मगर, तुरंत दूसरे बच्चों की देखभाल में लग जाती हूं। सबलोग अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। रीना कुमारी, ममता कुमारी, दीपा कुमारी, रेखा कुमारी, काजल कुमारी आदि ने भी कहा कि सभी बच्चे बीमारी से ठीक होकर घर चले जाएं, भगवान से यही प्रार्थना है।

एसकेएमसीएच की पीआइसीयू-3 में बेड संख्या पांच पर तीन वर्ष का आयुष बेसुध पड़ा है। उसने पांच दिन से आंख नहीं खोली है। उसके माथे को सहला रही मां सुनीता देवी की आंखों से आंसू की धारा बह रही है। उनकी गोद में करीब एक वर्ष का दूसरा बेटा है। जो बार-बार रोता है। उसे चुप कराती हैं। पिता राकेश कुमार बेटे को एकटक देख रहे हैं।

अंजाने से डर ने माता-पिता की भूख-प्यास को खत्म कर दिया है। उन्हें सिर्फ अपने बच्चे की चिंता है। रोते हुए सुनीता देवी कहती हैं कि पांच दिन हो गए साहेब, मेरे बच्चे ने आंख तक नहीं खोली है। ठीक था तो खूब खेलता था। शरारत करता था। देखिए कैसे बेहोश है। भगवान मेरे बच्चे को जल्द ठीक कर दें। पिता राकेश कुमार कहते हैं कि दस जून को यहां भर्ती कराया था। तब से आंख नहीं खोला है। गरीब आदमी हूं, मजदूरी कर परिवार चला रहा था। बच्चे की हालत बर्दाश्त नहीं होता।

Input : Dainik Jagran

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