बिपिन रावत नहीं रहे. उत्तराखंड के पहाड़ों से निकलकर भारत माता की रक्षा के लिए सेना की वर्दी पहनने वाले जनरल बिपिन रावत आजीवन एक सैनिक ही रहे. अडिग, अविचल और अभय. बिपिन रावत की जिंदगी अब भारतीय जनमानस में किस्सों और कहानियों के रूप में रहेगी. देश हित में खरी-खरी बोलने वाले बिपिन रावत 37 सालों के सैन्य करियर में उपलब्धियों की एक फेहरिस्त छोड़ गए हैं. निर्णय लेना और उस पर सख्ती से बने रहना उनकी जिंदगी का अहम फलसफा था. इस सिद्धांत को उन्होंने अपनी मिलिट्री लाइफ की शुरुआती दिनों में ही सीख लिया था.
बिपिन रावत निर्णय लेने की काबिलियत और एक बार डिसीजन ले लेने के बाद उस पर हर हाल में टिके रहने को जीवन का बेहद महत्वपूर्ण अनुशासन मानते थे. जिंदगी के इस सिद्धांत को वह निजी अनुभवों के आधार पर लोगों को बताते थे. कुछ साल पहले इंडियन आर्मी में ऑफिसर बनने के लिए तैयारी कर रहे छात्रों को उन्होंने अपना व्यक्तिगत अनुभव बताया था. सीडीएस रावत ने उस घटना का जिक्र किया था, जब वो युवा थे. भारतीय सेना में अफसर बनने के सपने देख रहे थे.
बिपिन रावत UPSC द्वारा आयोजित नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) की परीक्षा पास कर चुके थे. अब बारी इंटरव्यू की थी. जहां उनके और उनके जैसे सैकड़ों छात्रों की जिंदगी का फैसला होने वाला था. एनडीए की परीक्षा कितनी कठिन है, इसकी जानकारी आज भी वो छात्र दे सकते हैं, जो इसकी तैयारी करते हैं. एक गलत या अनुचित जवाब आपके महीनों की शारीरिक और मानसिक तपस्या को बेकार कर सकती है. बिपिन रावत ने अपने इंटरव्यू का पूरा वाकया और इस दौरान पूछे गए सवाल, फिर उनका वो उत्तर जिसने एनडीए में उनकी एंट्री दिलवाई, छात्रों के साथ साझा किया.
Gen Bipin Rawat was an outstanding soldier. A true patriot, he greatly contributed to modernising our armed forces and security apparatus. His insights and perspectives on strategic matters were exceptional. His passing away has saddened me deeply. Om Shanti. pic.twitter.com/YOuQvFT7Et
— Narendra Modi (@narendramodi) December 8, 2021
यहीं हमारे भाग्य का फैसला होना था
बिपिन रावत ने तब कहा था, “UPSC की एनडीए परीक्षा क्वालिफाई करने के बाद हम सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (SSB) के पास गए. मुझे इलाहाबाद जाने को कहा गया. यहां पर चार से पांच दिनों की सख्त ट्रेनिंग और टेस्टिंग के बाद आखिरकार इंटरव्यू का वक्त आया. हम सभी लाइन में खड़े थे. एक-एक कर हमें कमरे में बुलाया जा रहा था. यहीं हमारे भाग्य का फैसला होना था कि क्या हम एनडीए में शामिल हो पाएंगे या नहीं ?
आखिरकार मेरी बारी आई
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने कहा, आखिरकार मेरी बारी आई. मैं अंदर गया. सामने एक ब्रिगेडियर रैंक के ऑफिसर थे, जो मेरा इंटरव्यू लेने वाले थे. एक युवा छात्र के रूप में, जैसा कि आप सभी लोग हैं, उस दफ्तर में चकित सा था. उन्होंने पहले तो मुझसे चार-पांच सामान्य सवाल पूछे. मैं सहज हो गया. इसके बाद उन्होंने मेरी हॉबी पूछी.
बिपिन रावत का SSB इंटरव्यू का सबसे अहम सवाल
बिपिन रावत ने कहा था कि मैंने उन्हें अपनी कई हॉबी बताई. लेकिन ट्रैकिंग का मैं दीवाना था. तब उन्होंने मेरे सामने एक सवाल रखा, जो बहुत सिंपल लग रहा था. उन्होंने पूछा- यदि आपको ट्रैकिंग पर जाना हो, जो कि चार से पांच दिन चलने वाली हो, तो आप एक सबसे महत्वपूर्ण सामान का नाम बताइए जो आप अपने पास रखना चाहेंगे ?
अपने जवाब से बिपिन रावत ने प्रभावित किया
इस सवाल के जवाब में युवा छात्र बिपिन रावत ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में वे अपने पास माचिस की डिब्बी रखना चाहेंगे. बिपिन रावत ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि इसके बाद इंटरव्यू में हमारी चर्चा माचिस की डिब्बी पर केंद्रित हो गई. उन्होंने कहा कि इंटरव्यू में उनसे सवाल पूछा गया कि आखिर इस तरह की ट्रैकिंग में उन्होंने सबसे जरूरी वस्तु के रूप में उन्होंने माचिस को ही क्यों चुना?
बिपिन रावत ने अपने उत्तर को तर्कों से सही ठहराते हुए इंटरव्यू में कहा, अगर मेरे पास माचिस की डिब्बी है तो मैं ट्रैकिंग के दौरान इस एक चीज से कई काम कर सकता था और बहुत सारी गतिविधियों को अंजाम दे सकता था. बिपिन रावत ने कहा कि जब मनुष्य प्रारंभिक युग में आदिम अवस्था से आगे बढ़ा तो उन्होंने आग को खोज को सबसे अहम माना. मनुष्य ने इस खोज को अपनी कामयाबी माना. इसलिए मैंने महसूस किया कि माचिस की डिब्बी मेरे ट्रैकिंग गियर का सबसे अहम चीज हो सकती है.
ब्रिगेडियर ने बिपिन रावत पर जवाब बदलने के लिए दबाव डाला
तब जनरल रावत ने कहा था कि इंटरव्यू ले रहे ब्रिगेडियर ने उन्हें समझाने और दबाव डालने की कोशिश की कि आखिर माचिस के स्थान पर ये कोई और चीज क्यों नहीं हो सकती? जैसे कि चाकू, Rucksack (बैग) या फिर किताब क्यों नहीं, जिसे वह फुर्सत में पढ़ सकते थे. रावत ने आगे कहा कि मैंने उनकी सभी बातों को ध्यान से सुना, लेकिन ट्रैकिंग जैसी परिस्थितियों में जिसके बारे में मुझे बताया गया था, माचिस को सबसे महत्वपूर्ण चीज के रूप में ले जाने के निर्णय पर मैं विनम्रता से अडिग रहा.
आखिरकार मेरा सेलेक्शन हो गया
बिपिन रावत ने आगे छात्रों से कहा था कि पता नहीं उस ऑफिसर के दिमाग में मेरे जवाब से क्या असर हुआ, लेकिन नेशनल डिफेंस एकेडमी के लिए मेरा चयन हो गया. बिपिन रावत ने कहा था कि बाद में उन्होंने गौर किया कि मैंने पहली बार जवाब के रूप में जो माचिस का जिक्र किया और दबाव के बावजूद उस फैसले पर टिका रहा, यही वजह रही कि कहीं न कहीं मेरे सेलेक्शन के पीछे इस जवाब की भूमिका रही.
Decision लेने का द्वंद्व आपके सामने भी आएगा
छात्रों को अपनी इस सीख में बिपिन रावत ने कहा था कि जिंदगी में आपके सामने भी रोजाना ऐसे मौके आएंगे, जब आपको लगेगा कि आपका फैसला सही है या नहीं? एक फैसले पर कायम रहा जाए या नहीं? लेकिन एक बार अगर आप कोई फैसला ले लेते हैं तो आपको उस फैसले के प्रति समर्पित होकर उसे डिफेंड करना ही होगा. आप उस निर्णय पर आगे बढ़िए. क्योंकि तभी सफलता के मिशन पर आगे बढ़ेंगे.
आज भले ही भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी ये सीख भारत के लाखों मिलिट्री कैडेट के लिए प्रेरणा वाक्य जैसी बन गई है.
Source : Aaj Tak
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