हाल में संपन्न मंत्रिमंडल विस्तार में मुजफ्फरपुर को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका। इससे उपजी निराशा के बीच अब सबने अपना ध्यान राज्यपाल कोटे से होने वाले एमएलसी के मनोनयन पर लगा दिया है। हर कोई यह पूछ रहा कि एनडीए के दोनों प्रमुख घटक दलों के जिले के दावेदारों की लॉटरी निकलेगी या फिर कैबिनेट विस्तार वाली स्थिति ही रहेगी। खासकर भाजपा खेमे से यह सवाल काफी पूछे जा रहे।
सूबे में राज्यपाल कोटे से विधान परिषद के 12 सदस्यों का मनोनयन होना है। वर्तमान में दो ऐसे मंत्री हैं जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। ऐसे में उनका मनोनयन तय माना जा रहा। इस तरह से एमएलसी के दावेदारों में से किन्हीं 10 की किस्मत ही बदल सकती है। जहां तक मुजफ्फरपुर के दावेदारों के बारे में लगाए जा रहे कयासों का प्रश्न है तो सबसे अधिक नाम भाजपा से ही सामने आ रहे हैं। सबसे बड़ा नाम पूर्व नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश शर्मा का है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में वे मुजफ्फरपुर नगर सीट से बहुत कम अंतर से कांग्रेस के विजेंद्र चौधरी के हाथों हार गए थे। इसके बाद दूसरा नाम बोचहां की पूर्व विधायक व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष बेबी कुमारी का है। विधानसभा चुनाव के दौरान अंतिम समय में मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी के एनडीए में आ जाने के कारण बोचहां सीट भाजपा ने वीआइपी को दे दी थी। उसके बाद उन्होंने लोजपा से चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर दी थी। हालांकि बाद में उन्हें मना लिया गया था। हाे सकता है कि उन्हें पार्टी इस त्याग का सुफल दे। एक और प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश वर्मा का नाम भी उभर रहा है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी खूब तेजी से उनका नाम उभरा था। हालांकि अंतिम समय में पिछड़ गए। जिले में संगठन के काम को संवारने में इनका महत्वपूर्ण योगदान माना जा रहा है।
जदयू कोटे की बात की जाए ताे हाल में पार्टी ने जिले में जिस तरह की राजनीति का प्रदर्शन किया है उससे यह लगता है िकि यहां संगठन को आधार को देने के लिए एक या दो दावेदार परिषद भेजे जा सकते हैं। कयासों में गायघाट से इस बार जदयू प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक महेश्वर यादव का नाम लिया जा रहा है। वे राजद से जदयू में आए थे और बहुत कम अंतर से पीछे रहे गए। कहा तो यह जा रहा कि लोजपा के प्रत्याशी की वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पार्टी उन्हें परिषद में भेजकर कार्यकर्ताओं को बेहतर संदेश दे सकती है। वर्तमान में लवकुश समीकरण पर भी काम तेज हुआ है। हो सकता है कि जिले से कुशवाहा समाज से किसी को भेजा जाए। लेकिन, यह पूरी तरह से कयासबाजी है। दोनों प्रमुख दलों के नेता इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
Source : Dainik Jagran