होली जैसे-जैसे नजदीक आ रही है लोगों का उमंग बढ़ता जा रहा है। कॉलेज और स्कूलों में छुट्टी होने वाली है ऐसे में अपने दोस्तों के साथ रंग और गुलाल से छात्र-छात्राएं जमकर मस्ती कर रहे हैं। गुरुवार को एमडीडीएम कॉलेज परिसर में छात्राओं ने गुलाल से जमकर होली खेली। एक दूसरे को गुलाल लगाकर छात्राओं ने होली की शुभकामना दी। वहीं एलएस कॉलेज परिसर में भी छात्र होली को लेकर हुड़दंग करते दिखे। विश्वविद्यालय परिसर में धूल-मिट्टी से युवकों ने होली खेली और वहां से मिट्टी से सने ही घर की ओर गए।
होली को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए वरीय नागरिक सह जिला हिदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री उदय नारायण सिंह बताते हैं कि आज से 50 वर्ष पहले की होली त्योहार के रूप में मनाई जाती थी, जबकि आज इसमें सिर्फ हुड़दंग रह गया है। उस समय होली की शुरुआत वसंत पंचमी से हो जाती थी, जबकि वर्तमान में कब होली आई कब गई पता ही नहीं चलता। वसंत पंचमी के दिन से होलिका दहन तक डंफ, झाल-मजीरा पर होली गायन अनिवार्य था। लेकिन वर्तमान में फगुआ के पारंपरिक गीतों से भी युवा अवगत नहीं हैं। उस समय में होली गान में बच्चे, किशोर, युवा और बूढ़े सभी एक साथ शामिल होते थे, आज ऐसा दीदार दुर्लभ ही है। वह मस्ती भरी होली अब बस यादों में रह गई है।
व्यवसायी नरेंद्र शर्मा होली के संबंध में अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं होली द्वेष और मतभेद को मिटाने वाला त्योहार होता था। इसमें एक दूसरे को गुलाल-रंग लगाकर और पुआ-पकवान खिलाकर सामाजिक सौहार्द कायम करते थे। लेकिन वर्तमान परिवेश में लोग तनावग्रस्त हो गए हैं। ऐसे में न होली की मस्ती में शामिल हो रहे और न इस प्रकार का माहौल मिल रहा। युवा सोशल मीडिया और इंटरनेट के दीवाने हैं जबकि, उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति सजग रहना चाहिए था। जहां प्रेम व स्नेह है वहां होली है।
Input: Dainik Jagran