चार बार लगातार जीत के बावजूद विजेंद्र चौधरी ने वर्ष 2010 में विधानसभा क्षेत्र बदल लिया था। मुजफ्फरपुर के बदले कुढऩी विधानसभा क्षेत्र से उतरे थे। पार्टी थी लोजपा। कांटे के संघर्ष में जदयू के मनोज कुमार सिंह से करीब डेढ़ हजार वोटों से पराजित हो गए थे। इसमें वोटों के बिखराव का भी महत्वपूर्ण रोल रहा। निर्दलीय शाह आलम शब्बू ने जहां 12 हजार से अधिक वोट काटे, वहीं बसावन भगत ने 68 सौ। ये वोट डेढ़ हजार वोटों से हुए हार-जीत के परिणाम को प्रभावित करने के लिए काफी थे।
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विजेंद्र को कभी भी 50 हजार से कम वोट नहीं मिले
विधानसभा क्षेत्र में दिखा। विजेंद्र के मैदान में नहीं रहने से तीन बार नाकाम रहे भाजपा के सुरेश कुमार शर्मा की जीत आसान हो गई थी। ऐसा इसलिए भी माना जा सकता है, क्योंकि विजेंद्र को मुजफ्फरपुर में कभी भी 50 हजार से कम वोट नहीं मिले। पिछले चुनाव में वे फिर मुजफ्फरपुर लौटे, मगर पराजित हुए। हार के बावजूद इन्हें 65 हजार से अधिक वोट मिले थे।
मंत्री सुरेश कुमार शर्मा की मजबूत दावेदारी
अब विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। बड़े दलों के उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है। मगर, भाजपा से नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा की मजबूत दावेदारी है। विजेंद्र भी मैदान में उतरने को तैयार हैं। वहीं, नई पाॢटयों के उम्मीदवारों के साथ कई युवा चेहरे मैदान में उतरने को तैयार हैं। जाप के संरक्षक पप्पू यादव लगातार यहां का दौरा कर चुके हैं। इस पार्टी से सुरेश शर्मा के ही स्वजातीय की उम्मीदवारी की चर्चा है। वहीं, डिप्टी मेयर व युवा चेहरा मान मर्दन शुक्ला चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुके हैं। वीआइपी को यह सीट मिली तो ठीक, नहीं तो निर्दलीय ही भाग्य आजमाएंगे। इसके अलावा मेयर बनते-बनते रह गए एक बड़े व्यवसायी एवं वार्ड पार्षद भी ताल ठोंकने के लिए तैयार हैं। इन उम्मीदवारों की नजर एनडीए के परंपरागत वोटरों पर होगी। ऐसे में वोटों का बिखराव तय है। यह बिखराव बड़े दल के उम्मीदवारों की मुश्किलें इस बार जरूर बढ़ाएगा। अब देखना होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान इसे रोकने के लिए क्या-क्या जोर-आजमाइश होगी।
पिछले पांच चुनाव में सुरेश शर्मा व विजेंद्र चौधरी को मिले वोट
वर्ष सुरेश कु मार शर्मा विजेंद्र चौधरी
2000 60,040 86,873
फरवरी 2005 36,864 50,884
अक्टूबर 2005 चुनाव नहीं लड़े 59,410
2010 72,301 कुढऩी से लड़े
2015 95,594 65,855
Input: Dainik Jagran