मुज़फ़्फ़रपुर कोर्ट. गूगल पर इतना लिखकर सर्च करने पर पहले पन्ने पर जो सर्च रिजल्ट आएंगे वो इस तरह हैं…

एक ख़बर है, “अरविंद केजरीवाल पर बिहार में मुक़दमा, बिहारियों को अपमानित करने का आरोप.”

16 अगस्त 2019 को एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार, “बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की CJM कोर्ट में प्रियंका गांधी के ख़िलाफ़ आपराधिक केस दर्ज.”

गूगल सर्च के इन नतीजों से ऐसा लगता है कि मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य की शायद ही कोई हस्ती बाक़ी रह गई है जिनके ख़िलाफ़ मुज़फ़्फ़रपुर में मुक़दमा दर्ज न हुआ हो.

सबसे हाल का मुक़दमा उन 49 लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज हुआ है, जिन्होंने मॉब लिंचिंग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था.

इनमें इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फ़िल्मकार मणिरत्नम, अनुराग कश्यप, श्याम बेनेगल, अभिनेत्री अपर्णा सेन, गायिका शुभा मुदगल जैसे तमाम नाम हैं.

मुक़दमा इस आधार पर दर्ज हुआ है कि मॉब लिंचिंग पर प्रधानमंत्री को सार्वजनिक पत्र लिखकर इन हस्तियों ने वैश्विक स्तर पर देश और प्रधानमंत्री की छवि ख़राब की.

मुज़फ़्फ़रपुर से जुड़ी इन खबरों और मुक़दमों के पीछे एक नाम लगभग हर जगह दिखता है. सुधीर कुमार ओझा.

सुधीर कुमार ओझा मुज़फ़्फ़रपुर में ही वकील हैं. ख़ुद को सामाजिक कार्यकर्ता भी कहते हैं. इन सारे मुक़दमों के परिवादी (शिकायतकर्ता) भी हैं. इस तरह की 745 शिकायत अकेले कर चुके हैं.

कोर्ट का वक़्त : पर ओझा को इन बड़ी हस्तियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराकर क्या मिल जाता है? आज तक ऐसा कोई मामला नहीं बना जिसमें कोर्ट की तरफ़ से कोई अंतिम फ़ैसला आया हो.

बीबीसी से बातचीत में अपने ऊपर लग रहे आरोपों के जवाब में सुधीर कुमार ओझा कहते हैं, “मैंने कभी मीडिया से नहीं कहा कि मैंने केस किया है और आप इसे छापिए. आप मुझसे बात करने के लिए आए हैं, मैं आपके पास नहीं गया. यक़ीन मानिए, मैंने आज तक किसी मीडिया को कभी कोई ख़बर नहीं दी. लेकिन मीडिया को भी ख़बर चाहिए.”

”जहां तक बात मेरी है, मैं तो अपना काम करता हूं. जनसरोकार के नाते करता हूं तो मीडिया मेरा नाम लेता है. जो काम करेगा उसी का नाम भी होगा. चाहे वो बदनाम भी होगा. मैं पेशे से एक वकील हूं. जहां भी मुझे ग़लत लगता है, मैं आवाज़ उठाता हूं.”

वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं, “ऐसा वो सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए करते हैं और कोर्ट का वक़्त भी बर्बाद करते हैं. मुझे तो ये समझ में नहीं आता कि सुधीर कुमार ओझा को कोर्ट इतना भाव क्यों देता है.”

मुक़दमों का हश्र : ओझा शिकायत तो दायर कर देते हैं. स्वीकार भी हो जाती है. मीडिया में ख़बरें भी बन जाती हैं, लेकिन उन शिकायतों का हश्र क्या होता है?

क्या अब तक इन मामलों में कुछ हुआ?

ओझा कहते हैं, “90 फ़ीसदी शिकायतों पर कोर्ट ने संज्ञान लिया है. जांच का आदेश दिया है. यही मेरी सफलता है. जांच तो पुलिस को करना है. आप कोर्ट में घसीटने की बात करते हैं. मैंने यहीं से शिकायत कर सलमान ख़ान की फ़िल्म लव रात्रि का नाम बदलवाया है. मेरी ही शिकायत पर धूम के अश्लील सीनों पर ऐश्वर्या राय को जवाब देना पड़ा था, उन्हें वो सीन हटाने पड़े थे. लालू यादव तक को एक बार नोटिस जारी कर जवाब देना पड़ा था.”

सलमान ख़ान की फ़िल्म : जहां तक बात ‘लव यात्री’ की है तो इस फ़िल्म का नाम बदला गया था. पहले फ़िल्म का नाम ‘लव रात्रि’ था. निर्माताओं में से एक सलमान ख़ान ने ख़ुद ट्विटर पर इसकी जानकारी दी थी. मगर क्यों नाम बदला गया, ये नहीं बताया.

उस वक्त मीडिया रिपोर्टों में ये दावा किया गया था कि ‘लव रात्रि’ नाम को लेकर विरोध हिंदू संगठनों की ओर से किया गया था.

सलमान ख़ान वाले मामले का ज़िक्र करते हुए पुष्यमित्र कहते हैं, “इधर सुनने को ये मिला था कि वे राजनीतिक झुकाव और अपना हित साधने के लिए ऐसा करते हैं.”

लेकिन ओझा इससे इनकार करते हुए कहते हैं, “मैं किसी पार्टी के साथ नहीं हूं. पहले लोजपा में था. लेकिन वह भी छोड़ दिया और ऐसा क़तई नहीं है कि मैं पार्टी पॉलिटिक्स के लिए ये सब करता हूं. मैंने हर पार्टी के लोगों के ख़िलाफ़ केस किया है. जब-जब मुझे ग़लत लगा है.”

आसानी से मुक़दमा कैसे दर्ज हो जाता है?

ऐसे वक़्त में जब देश की अदालतों में लाखों मामले पेंडिंग हैं. निचली अदालतों में निपटारे का हाल और भी बुरा है.

वैसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि मुज़फ़्फ़रपुर में ऐसे मामलों पर इतनी आसानी से मुक़दमा कैसे दर्ज हो जाता है?

इस सवाल पर रिटायर्ड जज हरि प्रसाद कहते हैं, “आप ऐसा नहीं कह सकते कि कोर्ट के पास दूसरा कोई काम नहीं है. लेकिन जहां तक बात ऐसे मामलों की है तो कोर्ट इसके लिए मजबूर है. अगर कोई क़ानूनन किसी के ख़िलाफ़ शिकायत करता है तो कोर्ट का काम है उसकी शिकायत को सुनना. अगर शिकायत में दम लगता है तभी कोर्ट जांच का आदेश देता है. मैंने एक बार अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ की गई शिकायत को इसी आधार पर ख़ारिज़ कर दिया था क्योंकि शिकायतकर्ता के पास पक्ष में सबूत नहीं थे.”

मगर क्या कोर्ट के पास इतना वक़्त होता है कि वो हर बार एक ही तरह के मामलों की सुनवाई करे?

जज हरि प्रसाद कहते हैं, “मैं सिर्फ़ इतना ही कहूंगा कि कोर्ट इसके लिए बाध्य है. आप ये भी नहीं कह सकते हैं कि कोर्ट ऐेसे मामले सुनकर अपना वक़्त जाया कर रहा है. कोर्ट तो इसी के लिए बना ही है.”

बड़ी हस्तियों के ख़िलाफ़ केस : सुधीर कुमार ओझा के अलावा मुज़फ़्फ़रपुर के ही एक और शख़्स हैं जो इसी तरह से बड़ी हस्तियों के ख़िलाफ़ केस करते हैं.

नाम है तमन्ना हाशमी. तमन्ना से भी हमने यही सवाल किया कि मुज़फ़्फ़रपुर में ही इस तरह के मुक़दमे सबसे अधिक दर्ज क्यों होते हैं?

वे कहते हैं, “मुज़फ़्फ़रपुर में सबसे अधिक एक्टिविस्ट हैं. हम लोग अपनी आवाज़ न सिर्फ़ उठाते हैं बल्कि उसे दर्ज भी कराते हैं. हमारा आधार जनभावना का सम्मान और समाजसेवा है.”

तमन्ना ने भी अरविंद केजरीवाल, हर्षवर्धन, नीतीश कुमार, अल्पेश ठाकोर, अमित शाह समेत तमाम लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया है. क्या इन मामलों में कुछ नतीजे आए?

तमन्ना कहते हैं, “हम केवल शिकायत कर सकते हैं. आवाज़ उठा सकते हैं. जांच तो पुलिस को करनी है. अदालत को कराना है. अगर कोई जांच पूरी हो तब तो कोई अदालत तक आएगा.”

अदालत के आदेश के बाद क्या पुलिस इन मामलों की जांच करती है?

मुज़फ्फ़रपुर के सदर थाना के प्रभारी मिथिलेश झा हैं. सीजेएम कोर्ट वाले मामले अक्सर इसी थाने में दर्ज होते हैं. मिथिलेश झा कहते हैं, “जज साहब ने तो सीआरपीसी 156 (3) का इस्तेमाल कर मुक़दमा दर्ज करने और जांच का आदेश दे दिया है, लेकिन शिकायत के पक्ष में साक्ष्य ही प्रस्तुत नहीं किए गए हैं. बिना साक्ष्य के हम जांच को आगे कैसे बढ़ाएंगे? बाद में हम अपने वरीय पुलिस अधिकारियों के दिशा निर्देशों के आधार कोर्ट को रिपोर्ट करते हैं.”

क्या ऐसे किसी मामले में कभी किसी बड़ी हस्ती के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है? मिथिलेश झा कहते हैं, “अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ है. लेकिन कई बार ऐसा हुआ है कि ज़रूरी साक्ष्य नहीं होने से मामला ख़त्म हो जाता है. सुधीर कुमार ओझा ने ही हाल ही में रवीना टंडन के ख़िलाफ़ केस किया था. लेकिन वो उसमें साक्ष्य नहीं जमा कर पाए. केस को ख़त्म करना पड़ा.”

Input : BBC

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