डेढ़ दशक में शहरवासियों की प्यास बुझाने के लिए सरकार विभिन्न योजना मदों से दो अरब से अधिक की राशि उपलब्ध करा चुकी है। इसके बाद भी शहरवासियों की प्यास नहीं बुझ पाई है। आधी आबादी तक अभी पानी नहीं पहुंच पाया है। शहर की जलापूर्ति योजनाओं का हाल यह है कि वर्ष 2010-11 में मिली 98 करोड़ की योजना बीच रास्ते से गायब हो गई। करोड़ों रुपये की पाइप लाइन जमीन में दफन हो गईं और जलमीनार का आधा-अधूरा ढांचा योजना की कहानी बयां कर रहा है। इस प्रकार 98 करोड़ की जलापूर्ति पूरी नहीं हो पाई और करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए गए।

इस योजना से शहरवासियों को एक बूंद पानी भी नहीं मिल पाया।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में हर घर नल का जल योजना के तहत बिहार सरकार ने निगम को शहर के सभी वार्डों में मिनी पंप एवं पाइप लाइन विस्तार के लिए 42 करोड़ की योजना दी। इनमें 94 मिनी पंप लगाने के साथ नई पाइप लाइन बिछानी है। योजना का हाल यह है कि अभी कई वार्डों में काम नहीं हुआ है। कुछ वार्डों में काम हुआ, लेकिन आधा-अधूरा। कुछ का तो अभी कार्यादेश जारी हुआ है। इन योजनाओं के होते हुए भी सालों से शहर की आधी आबादी निगम की जलापूर्ति सुविधा से वंचित है। योजना के जमीन पर नहीं उतरने से शहरवासी निराश हंै। बुडको व निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। वार्ड पार्षदों में भी बेचैनी है। अगले साल निगम का चुनाव होना है। ऐसे में योजना के जमीन पर नहीं उतरने से उनको जवाब देना पड़ रहा है।

शहर के आधे हिस्से को नहीं मिल रहा पानी

मुजफ्फरपुर : शहर के आधे घरों तक निगम पानी नहीं पहुंचा सका है। विशेषकर वैसे क्षेत्र जो बाद में शहर से जुड़े हैैं। वहां निगम की पाइप लाइन ही नहीं है। आबादी के हिसाब से शहरवासियों के लिए प्रतिदिन 1 करोड़ 57 लाख 50 हजार गैलन पानी की जरूरत है, लेकिन मात्र 78 लाख गैलन पानी की ही आपूर्ति हो रही है। इससे साफ है कि शहरवासियों को 79.5 गैलन कम पानी मिल पाता है और जिससे आधे से अधिक आबादी को पेयजल की सुविधा से वंचित होना पड़ता। उन्हें अन्य विकल्पों पर निर्भर होना पड़ता है। यदि 42 करोड़ की जलापूर्ति योजना पर शत-प्रतिशत काम हो जाए तो शहर का एक चौथाई हिस्सा बच जाएगा जहां पानी नहीं पहुंच पाया है।

जलापूर्ति योजना के लिए निगम को मिली राशि

वित्तीय वर्ष रुपये (करोड़ में)

2006-07 3

2007-08 13

2008-09 12

2010-11 98

2014-15 10

2018-19 6

2019-20 5

2020-21 42

इन योजनाओं पर हुआ काम, लेकिन गुणवत्ता पर सवाल

निगम की बंद पड़ीं शहर की सभी जलमीनारों के जीर्णोद्वार के लिए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में पांच करोड़ रुपये दिए थे। इस राशि से सभी 11 जलमीनारों को चालू किया गया। कुछ तो बनने के बाद भी ठीक से काम नहीं कर पा रही हैैं। वहीं 10 करोड़ से शहर के कुछ वार्डों में सबमर्सिबल पंप लगाए गए थे। इनमें से अधिकतर खराब हो गए हैं।

जलापूर्ति योजनाओं पर सिर्फ पैसा खर्च होता पानी नहीं मिलता है। सरकारी राशि को पानी की तरह बहा दिया जाता है, लेकिन लोगों की प्यास नहीं बुझती है।

अमर कुमार, अमरूद बगान

जलापूर्ति योजनाओं को लेकर कभी गंभीरता नहीं बरती गई। 98 करोड़ की जलापूर्ति योजना जमीन पर नहीं उतर पाई। इसके लिए बुडको पर कार्रवाई होनी चाहिए थी।

– दीपक कुमार मणी, शास्त्रीनगर

जिन इलाकों में पाइप लाइन नहीं है वहां इसे बिछाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं होता। सभी वार्डों को समान रूप से राशि दी जाती है। वंचित इलाकों को प्राथमिकता देनी चाहिए थी।

– राजेश कुमार आर्य, पुरानी बाजार

98 करोड़ की जलापूर्ति योजना से निगम को कोई लेना-देना नहीं। उसे पूरा करने की जिम्मेदारी बुडको को दी गई थी। 42 करोड़ की योजना पर काम चल रहा है। जल्द पूरा करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिया गया है।

ओम प्रकाश, सिटी मैनेजर

Source : Dainik Jagran

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