बाढ़ से सुरक्षा और बचाव को लेकर प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आठ आश्रय स्थल बनाए गए। लेकिन, कोई आश्रय स्थल सुरक्षित नहीं है। बाढ़ के रौद्र रूप ने इन स्थलों की सूरत ही बदल दी। अधिकतर आश्रय स्थल पानी से इस कदर घिर गए कि वहां तक पहुंचना ही मुमकिन नहीं रहा। जहां पहुंचा जा सकता है वहां का भवन इतना जर्जर व पुराना है कि खतरे से खाली नहीं है। कुछ निर्जन स्थलों में विषैले जंतुओं का खतरा बना रहता है। यही कारण है कि विस्थापित होकर भी लोग अपनी सुविधानुसार ठिकाना ढूंढ लेते हैं।
कटरा पंचायत भवन को आश्रय स्थल बनाया गया था। जल स्तर बढऩे के साथ ही यहां चारों तरफ से पानी का दबाव बढऩे लगा और पंचायत सरकार भवन का परिसर पानी से भर गया। सुरक्षा को बनाए गए बांध भी टूटने की कगार पर पहुंच गया। हालांकि, पंचायत के मुखिया ने ग्रामीणों के सहयोग से बचा लिया। लेकिन, बाढ़ पीडित उसमें ठहरने से इनकार कर दिया। बकुची पंचायत भवन भी चारों तरफ पानी से घिर गया। वहां तक पहुंचना ही मुश्किल था। खपरैल का यह भवन भी पुराना और जर्जर है जिसके गिरने का खतरा बना रहता है। बसघट्टा आंगनबाड़ी केंद्र जाने के मार्ग में तीन फीट पानी भर गया जिसे तैर कर पार करना बाढ़ पीडितों के लिए कठिन कार्य था। इसलिए विस्थापित होकर भी लोग बांध पर जाना बेहतर समझे, लेकिन आश्रय स्थल पर नहीं गए।
गंगेया हाईस्कूल प्रारंभ से ही आश्रय स्थल बनाया जाता रहा है। यहां सड़क, बाजार और रोशनी का प्रबंध भी उपलब्ध रहा है। लेकिन, इसबार बाजी पलट गई। निर्माणाधीन सड़क पर मिटृी भर देने और पुलिया निर्माण के लिए खोदे गए सड़क के स्थान पर पानी का बहाव इतना तेज हुआ कि पैर जमाना मुश्किल था। बागमती किनारे होने के कारण हाई स्कूल परिसर पहले ही पानी से भर गया। इसका कारण था कि ठीकेदार ने नदी किनारे से मिटृी की कटाई कर ली थी। जलस्तर बढऩे के साथ ही पानी स्कूल परिसर में प्रवेश कर गया और तबाही मचा दी।
उधर, खंगुरा मध्य विद्यालय को आश्रय स्थल बनाया गया। यह स्थान सुरक्षित था। लेकिन इसके मार्ग में पानी भर गए। कई जगहों पर गड्ढे बन गए। बसघटृा डायवर्सन में नाव चलने लगी। इन कठिनाइयों के कारण लोगों का टिकना यहा मुश्किल हो गया। इस तरह सरकारी स्तर पर चिन्हित आश्रय स्थलों की अपेक्षा बाढ़ पीडि़तों ने बांध, ऊंची छत तथा रोड पर रहना ज्यादा बेहतर समझा। कटरा के हटबरिया और दरगाह के लगभग सौ विस्थापित परिवार निर्माणाधीन एनएच 527 पर तंबू लगाकर रहते हैं। वहीं उनके लिए सामुदायिक किचेन चल रहा है। नवादा मुख्य सड़क पर पन्नी के तंबू में 50 परिवार आश्रय लिए हुए हैं। अंदामा और पतांरी के दो सौ परिवार छतों पर गुजारा कर रहे हैं। बसंत और कटरा मुशहरी के लोग बांध पर आश्रय ले रखे हैं। गंगेया और बर्री के लोगों ने भी छतों पर रात गुजारना बेहतर समझा। मोहनपुर-बरैठा के लोगों ने मुख्य सड़क पर आशियाना बना लिया।
Input: dainik jagran