शहरीकरण की दौड़ में पानी का मुद्दा पीछे छूटता जा रहा है। प्राकृतिक जल स्रोत नष्ट किए जा रहे हैैं। व्यावसायिक उपयोग के लिए बड़े पैमाने पर भूमिगत जल का दोहन हो रहा है। इसका परिणाम गर्मी में दिखता है, पानी की किल्लत सामने आती है। नगर निगम के पंप एवं लोगों के घरों में लगे मोटर जवाब देने लगते हैैं। चापाकल भी पानी उगलना बंद कर देते हैं। शहर में जल संकट गहरा जाता है। इसके बाद भी जल संरक्षण के गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं। यदि समय रहते हम नहीं चेते और संचित जल को बर्बाद करते रहे तो वह समय भी आएगा जब हम पीने के पानी के लिए भटकेंगे। हमारी आने वाली पीढ़ी को भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसलिए हमें संचित पानी को बचाना होगा।

भू-जल भंडार को बनाए रखने के लिए उचित प्रबंधन करने होंगे। इसके लिए न सिर्फ आम जनता बल्कि शासन-प्रशासन को भी गंभीर प्रयास करने होंगे, लेकिन वर्तमान हालात यह हैं कि जल संरक्षण को लेकर न हम जागरूक हंै और न ही जनप्रतिनिधि। किसी भी दल ने अपने राजनीतिक एजेंडे में जल संरक्षण के प्रयास को शामिल नहीं किया। दैनिक जागरण के सहेज लो हर बूंद अभियान को लेकर बातचीत में शहर के बुद्धिजीवियों ने ये बाते कहीं।

सामाजिक कार्यकर्ता मदन मोहन ने कहा कि पुराने समय में लोग जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान देते थे। वर्षा जल को संचित करने के लिए बड़े पैमाने पर पोखर, तालाब व कुआं बनवाते थे। आज नए पोखर के निर्माण की बात तो दूर पहले से बने पोखर-तालाब व कुओं को समाप्त करते जा रहे हैं। पूर्वजों की तरह ही हमें भी जल प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। अखाड़ाघाट निवासी विजय कुमार ङ्क्षसह ने कहा कि उत्तर बिहार प्रभावित क्षेत्र है। बाढ़ के पानी का उचित प्रबंधन कर सालभर इसका लाभ उठाया जा सकता है। जलाशय का निर्माण कर बाढ़ के पानी को जमा किया जा सकता है। बीबीगंज निवासी राजा विनीत ने कहा कि हम बड़े पैमाने पर पानी का अपव्यय करते हैं। जरूरत से ज्यादा पानी निकालकर उसे हम बर्बाद कर देते हैं। इसलिए अपने पानी के अपव्यय पर भी ध्यान देना होगा।

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जल संरक्षण से संबंधित किसी प्रकार की जानकारी आप दैनिक जागरण को वाट्सएप नंबर 93342 46262 पर दे सकते हैं। हम उसे अपनी रपट में स्थान देंगे।

Input: Dainik Jagran

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