लड़कियां आज हर एक क्षेत्र में अपना मुकाम स्थापित कर रही हैं क्योंकि अब उन्हें अपने लिए आवाज़ उठाना आ गया है। हालांकि यह बदलाव अचानक से नहीं आया है बल्कि इसके पीछे लड़कियों का संघर्ष छुपा हुआ है। आय दिन हम अखबारों और अन्य सोशल साइट्स पर खबरें पढ़ते रहते हैं कि अमुक जगह पर रेप या छेड़छाड़ की घटना हुई। हम इन खबरों को देखकर कहीं ना कहीं सहम जाते हैं और डर के साये में सिमट जाते हैं। इसके साथ ही इसी साये में कई लड़कियों की उड़ान भी मंद पर जाती है क्योंकि परिवार वाले इज्ज़त और डर के कारण अपनी बेटियों को बाहर नहीं निकलने देते।
वहीं अगर आप अन्य सकारात्मक खबरों से भी रुबरु होंगे तो आपको इसके अन्य पहलू भी दिखाई देंगे। जिसमें लड़कियों को प्रोत्साहित करने की खबरें भी होती हैं इसलिए आने वाले युवा दिवस के मौके पर आइए जानते हैं विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी ऐसी लड़कियों के बारे में जो अन्य लोगों के लिए मिसाल हैं।
इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है मुज़फ्फरपूर, बिहार से ताल्लुक रखने वाली शिवांगी का। वह भारतीय नौसेना की पहली सब लेफ्टिनेंट महिला पायलट बन गई हैं। नौसेना के अफसरों के अनुसार वह ड्रोनियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट उड़ाएंगी।
उन्होंने 2010 में डीएवी पब्लिक स्कूल से सीबीएसई 10वीं की परीक्षा पास की थी, जहां उन्हें 10 सीजीपीए प्राप्त हुआ था। साइंस स्ट्रीम से 12वीं करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग किया।
एमटेक में दाखिले के बाद एसएसबी की परीक्षा के ज़रिये नेवी में सब लेफ्टिनेंट के रूप में चयनित हुईं और ट्रेनिंग के बाद पहली महिला पायलट के लिए चयनित हो गईं।
इससे पहले एयरफोर्स में वर्ष 2019 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कांत फाइटर प्लेन उड़ाने वाली महिला पायलट बनी थीं।
संगीत में हमेशा से लड़कियां आगे रहीं हैं मगर समाज के दकियानूसी ख्यालातों के कारण उनके सुर को आसमां नहीं मिल पाता है, जिस कारण वह अंदर ही अंदर अपनी आवाज़ को दबाते चली जाती हैं। ऐसी लड़कियों के सुरों को साज देने के लिए पेलवा नायक एक प्रेरणास्त्रोत के तरह उभरी हैं। पेलवा नायक ध्रुपद गायन शैली की गायिका हैं, जिस गायन शैली में पुरुषओं का वर्चस्व माना जाता रहा है।
इस मिथक को तोड़ते हुए पेलवा आगे आ रही हैं ताकि अन्य लड़कियों और महिलाओं को सुर का आसमां मिल सके। पेलवा बताती हैं कि उनके गुरु उस्ताद जिया फरद्दुदिन डागर के अंदर स्त्रियों के गुण भी थे। मुझे यह समझ नहीं आता कि क्यों लोग ध्रुपद गायन को पुरुषों से जोड़कर देखते हैं जबकि यह भी एक आर्ट है। ध्रुपद गायन के इस निश्चय में उनके परिवार वालों ने पूरा साथ दिया। पेलवा के माता-पिता स्वयं भी क्रिएटिव रहे हैं, जिस कारण से पेलवा को इस फिल्ड में आने में मदद मिली। हालांकि यह पेलवा का संघर्ष ही है कि उन्होंने अपने सपनों के लिए खुद को समय दिया।
आपने क्या तभी किसी महिला या लड़की को गाड़ी के टायरों के नीचे उसकी मरम्मत करते हुए फिल्मों में ही देखा होगा। फिल्मों से मैं आपको हकीकत की ओर लेकर चलती हूं, जहां आप एक ऐसी महिला से मिलेंगे, जो ट्रकों की मरम्मत किया करती हैं। मूल रुप से ग्वालियर से संबंध रखने वाली शांति देवी, संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर, दिल्ली में ट्रकों की मरम्मत करती हैं। इस इलाके में महिलाओं का जाना ना के बराबर होता है। यहां ट्रकों का जमावड़ा लगता है, जिसे टेक्निशियन शांति देवी ठीक किया करती हैं। शांति देवी का जज्बा अनेक महिलाओं के लिए प्रेरणा है कि वह भी आत्मनिर्भर बनें। शांति भले ही उम्र के आंकड़ों में आगे हैं मगर वह हर एक उस महिला के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जो अपने लिए कुछ करना चाहती हैं।
अरे लड़की है, जोर से चोट लग जाएगी तो रोने लगेगी। आपने इस तरह के वाक्य खूब सुने होंगे। वहीं अगर कोई लड़की किसी लड़के को मारे तो लोग कहते हैं, उफ्फ लड़की से मार खाकर आ गया। कभी फौज में जाने और पुलिस बनने का ख्वाब देखने वाली मेहरुन-निशा शौकत अली, आज ऐसे ही सवालों और वाक्यों पर घुसा मारती हैं, जो दर्शाता है कि लड़कियां कमज़ोर हैं। उनकी मां ने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया तो वहीं दूसरी ओर उनके पिता को हमेशा यह डर लगा रहता कि लड़की है, कुछ ऊंच-नीच हो गई तो। हालांकि इसके बावजूद भी वह हमेशा अपने सपनों और पढ़ाई को लेकर आगे बढ़ते रहीं।
2007 में जब उनके परिवार में आर्थिक परेशानी हुई, उस वक्त उन्होंने एनसीसी ज्वाइंन किया था ताकि उन्हें नौकरी मिल जाए मगर उनके पिता इसके खिलाफ थे। जिस कारण उन्होंने उनके युनिफार्म को आग के हवाले कर दिया था।
कहते हैं ना, कितनी भी मुश्किलें आएं कदम नहीं रुकने चाहिए। इसके बाद निशा ने बाउंसर की जॉब में अप्लाई किया और वह एक बाउंसर बन गईं।
इस तरह यह कुछ ऐसी महिलाएं हैं, जो उम्र के हर एक पड़ाव में भी अपने हौसले से जवां नज़र आती हैं। बात केवल खुद को ढ़ंढ़ने और अपने लिए कदम बढ़ाने की है।