वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को संसद में 2019-20 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। इस सर्वे के मुताबिक, पिछले 13 साल में खाने की थाली आमदनी के मुकाबले किफायती हुई है। इस दौरान वेज थाली 29% और नॉन वेज थाली 18% ज्यादा किफायती हुई। खाने की थाली की किफायत किसी श्रमिक की एक दिन की मजदूरी के आधार पर तय की जाती है। वहीं सर्वे में यह भी खुलासा हुआ कि देश में रेस्तरां खोलने के लिए बंदूक का लाइसेंस लेने के मुकाबले ज्यादा दस्तावेज की जरूरत होती है। रेस्तरां के लिए 45, जबकि बंदूक के लाइसेंस के लिए महज 19 दस्तावेज चाहिए पड़ते हैं।

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मुख्य आर्थिक सर्वेक्षक द्वारा तैयार किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि पिछले 13 सालों में एक श्रमिक की दैनिक मजदूरी बढ़ने के हिसाब से थाली की किफायत बढ़ी है। यह आम आदमी का जीवन स्तर बेहतर होने का संकेत है। सर्वे में कहा गया कि 2015-16 में खाने की थाली की कीमतों में अंतर आया था। 2015-15 में कृषि उत्पादन को बेहतर करने और कीमतों को पारदर्शी तरीके से लागू करने के चलते यह मुमकिन हो पाया।

‘थालीनॉमिक्स’ से तय होती है कीमत

यह विश्लेषण ‘थालीनॉमिक्स’ यानी भारत में खाने की एक थाली के अर्थशास्त्र पर आधारित है। इसके जरिए यह जांचा जाता है कि देश का आम आदमी हर दिन खाने पर कितना खर्च करता है। सर्वे के दौरान भारत के सभी हिस्सों में लोगों के खान-पान की आदतों और उनकी कमाई का अध्ययन किया गया। इसमें कहा गया कि दो समय शाकाहारी खाना खाने वाले 5 सदस्यों के परिवार की औसत सालाना आमदनी 10,887 रुपए रही, जबकि नॉन वेज खाने वाले ऐसे ही परिवार की आमदनी 11,787 रुपए रही।

रेस्तरां के लिए बंदूक से ज्यादा कागज

आर्थिक सर्वे में यह भी कहा गया कि दिल्ली और कोलकाता में रेस्तरां खोलने के लिए पुलिस का लायसेंस चाहिए होता है। रेस्तरां के लिए कुल 45 तरह के दस्तावेज होना जरूरी है, जबकि बंदूक का लाइसेंस लेने के लिए महज 19 दस्तावेज देने होते हैं। इसी तरह बड़ी आतिशबाजी के लाइसेंस के लिए भी 12 दस्तावेज ही चाहिए।

व्यवसाय शुरू करने में भी मुश्किलें

नेशनल रेस्तरां एसोशियेशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के मुताबिक, बेंगलुरू में 36, दिल्ली में 26 और मुंबई में 22 तरह के लाइसेंस लेना जरूरी हैं। कुछ इसी तरह की परेशानी अन्य व्यवसाय शुरू करने में होती है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग 2014 में 143 से 2019 में भारत की रैंकिंग 63 पर पहुंच गई, लेकिन अब भी यह बड़ी चिंता का विषय है।

 

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