वीर सावरकर वो नाम जिसके हृदय में देशभक्ति की ज्वाला धधकती थी. सावरकर वो महान मनुष्य जिसने भारतीय संस्कृति के उपासना को ही जीवन समझा, सावरकर वो तेज़ जिसकी लपट ने अंग्रेजो के इरादों को झुलसा दिया, जिसने अपने प्राण की चिंता की नहीं, सावरकर कहते थे, मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ. देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की करता हूं.

सावरकर के वीरता के किस्सों को एक लेख में समेटना बेहद कठिन है. वीर सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लन्दन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन संगठित किया, वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को ‘भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ बताते हुए 1907 में लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखा, अंगेजो के दुश्मन थे सावरकर उन्होंने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई, 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी. ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी, सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबंधित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी.

सावरकर ने ढींगरा के लिये आवाज़ उठायी उसे देशभक्त बताकर क्रांतिकारी विद्रोह को औऱर उग्र कर दिया, सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में उन्हें फंसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया, सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया. जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी, जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.

सावरकर के अनेकों ऐसे काम है जो सवारकर को वीर बनाते है लेक़िन आज भारत का दुर्भाग्य है कि सावरकर देश की घटिया राजनीति का शिकार हो गये, कुछ नीच मानसिकता के लोग इतने महान वीर पुरुष के जीवन पर प्रश्नचिन्ह लगाते है औऱ उनके वीर व्यक्तित्व को कलंकित करते है. राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कई लोग इस देश में अपनी घटिया मानसिकता का परिचय देते हुए सावरकर को कायर कहते है और वज़ह बताते है उनके द्वारा जेल से लिखी गयी दया याचिका को, सावरकर के उपर राजनीति करने वाले और वीरता पर सवाल करने वालों को पता होना चाहिये कि उनकी ओछी मानसिकता सावरकर के बुद्धिमता के तेज़ को नही समझ सकती.

जिस दया याचिका के बाद सावरकर के रिहाई को लेकर लोग उन्हें कायर कहते है कि उन्होंने अंग्रेजो को माफीनामा क्यों लिखा उन्हें पता होना चैहिये की अंडमान के जेल में सड़ने से बेहतर था कि बाहर निकल कर अंग्रेजी हुकूमत से लड़ना सावरकर जानते थे, सालों जेल में रहने से बेहतर है भूमिगत रह करके उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने का जितना मौका मिले, उतना अच्छा है. उनकी सोच ये थी कि अगर वो जेल के बाहर रहेंगे तो वो जो करना चाहेंगे, वो कर सकेंगे जोकि अंडमान निकोबार की जेल से संभव नहीं था. जो बिल्कुल वाजिब सोच थी इसलिए उन्होंने ने दया याचिका लिख कर अंग्रेजो से रिहाई मांगी ताकि वो आज़ादी के मकसद में कामयाब हो सके.

लेकिन आज कुछ देशद्रोहियों ने उनके इसी दया याचिका के चलते वीर सावरकर के वीरता पर सवाल करने का मौका मिल गया ऐसे नीच विचारधारा के लोग एक देशभक्त का अपमान कर रहे है और सावरकर के कृति को धूमिल कर रहे है लेकिन वीर सावरकर आज भी हर देशभक्त के हृदय में जीवित है और सदैव रहेंगे.. तो आप भी वीर सावरकर जिंदाबाद..

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...