बिहार में शिक्षा विभाग (Education Department) में विद्यालयों (Schools) में प्रयोगशालाओं (Laboratories) के उपकरण की खरीद में बड़ा घोटाला सामने आया है. साल 20017-18 से जुड़े इस मामले में शिक्षा विभाग में अधिकारी से लेकर सरकार तक की बड़ी लापरवाही सामने आयी है. छात्रों के उज्ज्वल भविष्य और पठन-पाठन की बेहतर व्यवस्था के मकसद से 6 हजार विद्यालयों को 1 अरब 20 करोड़ रुपये आवंटित किये गए, लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी विद्यालयों ने खरीदारी से संबंधित उपयोगिता प्रमाण पत्र (Utility Certificates) नहीं सौंपा है. हैरानी की बात तो यह है कि न्यूज़ 18 ने जब कई जिलों के डीओ से बात की तब उन्होंने उपयोगिता प्रमाण पत्र जल्द से जल्द मांगने का हवाला दिया. जबकि मार्च 2018 में ही उपयोगिता प्रमाण पत्र लिया जाना था. यही नहीं, सरकार भी इस पूरे मामले से अंजान बनी हुई है.

ये लोग हजम कर गए करोड़ों की राशि
1 अरब 20 करोड़ रुपए से ज्यादा जो रकम छात्रों की भले के लिए आयी थी उसे सरकारी बाबूओं ने मिलकर ऐसा हजम किया कि डकार नहीं ली, लेकिन न्यूज़ 18 की टीम को जो कागजात मिले उसने इन सारे सरकारी कर्मचारियों के पाप का कच्चा चिट्ठा खोल दिया है. मामला 2017-18 में बिहार के 6 हजार माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में लैब के उपकरणों, स्कूलों के टेबल बेंच और बाकी सामान की खरीद से जुड़ा है.

ऐसे हुआ लूट का खेल

जिले का नाम स्कूलों की संख्या आवंटित रकम
पटना (राजधानी) 164 8 करोड़ 20 लाख रुपए
नालंदा (सीएम का गृह जिला) 142 7 करोड़ 10 लाख रुपए
मुजफ्फरपुर 122 6 करोड़ 10 लाख रुपए
भोजपुर 109 5 करोड़ 45 लाख रुपए
पूर्वी चंपारण 98 4 करोड़ 90 लाख रुपए
गया 92 4 करोड़ 60 लाख रुपए
पश्चिमी चंपारण 78 3 करोड़ 90 लाख रुपए
रोहतास 72 3 करोड़ 60 लाख रुपए
बक्सर 48 2 करोड़ 40 लाख रुपए
कैमूर 45 2 करोड़ 25 लाख रुपए

सभी जिलों में हुआ घोटाला
ये तो सिर्फ 10 जिलों का आंकड़ा है जहां ज्यादा रकम आवंटित हुई, लेकिन घोटाला करीब-करीब सभी जिलों में है. कुल मिलाकर 38 जिलों के 2400 स्कूलों के लिए 1 अरब 20 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. घोटाले की बू आने पर बक्सर जिले में कई हेडमास्टरों की गर्दन फंसती दिख रही है. DDC ने कई हेडमास्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उनका वेतन रोक दिया है, लेकिन बाकी जिलों में अभी तक अफसर चादर तान कर सोए हुए हैं.

आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय, की माने तो घटाला की जांच की आंच बहुत दूर तक फैली है. दरअसल स्कूलों को पैसे दे दिए गए, लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी इन स्कूलों के हेडमास्टरों ने आज तक एक उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया ही नहीं. कई स्कूलों में तो पुराने लैब उपकरणों और बेंच-टेबल से ही काम लिया जा रहा है.साफ है कि यहां पैसे का हिसाब-किताब कहीं भी नहीं है. न्यूज़ 18 के सवाल पर पटना समेत कई जिलों के शिक्षा पदाधिकारियों ने उपयोगिता प्रमाण पत्र अब जाकर मांगे जाने का हवाला दिया.

शिक्षा मंत्री ने कही ये बात
मुख्यमंत्री नितिश कुमार के गृह जिला नालंदा के जिला शिक्षा पदाधिकारी मनोज कुमार से जब इस पर सवाल किया गया तो उन्‍होंने भी प्रमाण पत्र नहीं मिलने की बात कही है. सबसे हैरान करने वाला जवाब तो सूबे के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा का है. पहले तो मंत्री घोटाले की बात से ही इनकार कर रहे थे, लेकिन न्यूज़ 18 की टीम ने जब उन्हें कागजात दिखाए तब जाकर उन्होंने जांच की हामी भरी. हालांकि देखना होगा कि पूरे मामले की जांच होगी या फिर शिक्षा मंत्री का दावा दावा ही रह जाएगा.

input ; News18

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