श्री महाकालेश्वर मंदिर (Shri Mahakaleswar Temple) भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) में से एक है. यह मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के उज्जैन (Ujjain) नगर में स्थित है. यह महाकालेश्वर भगवान (भगवान शिव) का प्रमुख मंदिर है. पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का अद्भुत वर्णन मिलता है. स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है. ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. महाकवि कालिदास (kalidas) ने मेघदूत Meghdoot) में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है. 1235 ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है. प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है.

Harsiddhi Mata Temple | Ujjain | Madhya Pradesh - Explorations ...

इसके बारे में इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था. इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं नष्ट हो चुकी थीं लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया.

इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव दोबारा लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. मराठों के शासनकाल में यहां दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटीं- पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया.

मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है. गर्भगृह तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है. इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है. महाशिवरात्रि और श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है. हालांकि लॉकडाउन के चलते अभी मंदिर भक्तों के लिए बंद है.

Ujjain: Officials take stock of arrangements ahead of Mahashivratri

मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था. बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा कराई गई.

सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था. इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया.

महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहां की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. हाल ही में इसके 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है. हाल ही में मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है.

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