घर पर मोती की खेती की बात सुनकर आपको आश्चर्य होगा। लेकिन, यह पूरी तरह सत्य है। दलसिंहसराय बाजार के वार्ड दो निवासी राजकुमार शर्मा एकाउंटेंट की नौकरी छोड़ ऐसा कर रहे। दो साल पहले अखबार में विज्ञापन देख भुवनेश्वर और जयपुर में इसकी ट्रेनिंग ली। इसके बाद मोती की खेती ने उनकी जिंदगी बदल दी। इससे हर साल वे लाखों रुपये कमा रहे। दर्जनों किसान उनसे प्रशिक्षण लेकर इसकी खेती कर रहे।
एक मोती के उत्पादन से लेकर बाजार तक पहुंचाने में करीब 40 रुपये खर्च आता है। बिक्री तीन से चार सौ रुपये में होती है। अभी राजकुमार ने 600 सीप में बीज डालकर खेती की है। बीज वे भुवनेश्वर से खरीदकर लाते हैं। वे कहते हैं, आजकल डिजाइनर मोतियों को खासा पसंद किया जा रहा। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। मोती निकालने के बाद सीप को भी बाजार में बेचा जा सकता है। इससे सजावटी सामान तैयार होता है।
ऐसे करते मोती की खेती
मोती की खेती के लिए पानी का टैंक या छोटा सा तालाब बनाने सहित अन्य पर लगभग 40 हजार खर्च आता है। बाजार से 10 से 15 रुपये प्रति पीस के हिसाब से सीप (ओएस्टर)खरीद कर लाते हैं। सीप में छोटी सी सर्जरी कर बीज डाला जाता है। जालीदार बैग में पांच से छह सीप रखकर उसे रस्सी या लकड़ी के सहारे तीन से चार फीट गहरे पानी में डाल देते हैं।
इस सीप को मोती तैयार करने में 12 से 18 माह लगता है। पानी में जरूरी पोषक तत्व के लिए 15 दिन के अंतराल पर कैल्शियम और शैवाल डालते हैं। सीप कुछ खाती नहीं, बल्कि उसी पानी को चूसकर अपना पेट भरती है। मोती निकालने के बाद सीप मर जाती है।
राजकुमार ने वर्ष 2017 में मित्र प्रणव कुमार के साथ दलसिंहसराय प्रखंड के बुलाकीपुर गांव में पर्ल फाउंडेशन नामक प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया। इस समय 30 लोग प्रशिक्षण ले रहे। इसके अलावा दलङ्क्षसहसराय प्रखंड के हरेराम शर्मा, प्रकाश कुमार, संजय महतो, दीपक कुमार, विकास महतो, नवादा जिले के पीयूष कुमार, अनुराग कुमार, मधुबनी के अजय कुमार, सीतामढ़ी के कुणाल कुमार, गया जिले के रंजीत कुमार और सोनू कुमार सहित अन्य प्रशिक्षण लेकर मोती की खेती कर रहे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वैज्ञानिक डॉ. दिव्यांशु का कहना है कि नई तकनीक से समुद्र से दूर रहने वाले लोग भी मोती की खेती कर रहे। इससे रोजगार मिल रहा है। बिहार के कई नौजवान प्रशिक्षण प्राप्त कर इस कार्य में लगे हैं।
Input : Dainik Jagran