रोजाना सुबह 72 साल के देवनाथ सेन ऑटो से पूर्णिया बस स्टैंड के पास मौजूद विकास बाजार जाते है और अपनी दुकान खोलकर दुकानदारी शुरू कर देते है. ये उनका रोजाना का काम है.
देखने में ये बात बहुत सामान्य-सी लगती है लेकिन दुकानदार देवनाथ सेन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं. वो चार बार सांसद रहे फनी गोपाल सेन गुप्ता के बेटे हैं.
फनी गोपाल सेनगुप्ता 1952 से 1967 के बीच पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के लिए हुए चार आम चुनावों में जीत कर सांसद बने थे.
देवनाथ सेन बताते है, “पिताजी से जब कभी संपत्ति के बारे में बात की तो वो कहते थे – तुम खुद कमा के बना लेना, बहुत आनंद आएगा. यही सोचना कि तुम्हारे बाप ने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया. तब से ये बात दिलोदिमाग में बैठ गई कि ईमानदारी की रोटी खाएगें. ”
फनी गोपाल सेनगुप्ता का खानदानी पेशा कविराज यानी वैद्द का था. ललित मोहन सेन गुप्ता का ये परिवार बांग्लादेश से 1890 में पूर्णिया आकर बस गया था.
ललित मोहन के तीन बेटे थे. सबसे बड़ा बेटा शिक्षक, फिर फनी गोपाल सेनगुप्ता और सबसे छोटा बेटा कविराज यानी वैद्द. चूंकि सबसे छोटे बेटे की मृत्यु कम उम्र में ही हो गई, इसलिए खानदानी पेशे को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं था.
पूर्णिया जिले की स्थापना के 250 साल पूरे होने पर प्रशासन द्वारा छापी पत्रिका ‘वल्लरी’ के मुताबिक़ फनी गोपाल सेनगुप्ता का जन्म 1905 में पूर्णिया शहर में हुआ.
मुख्य तौर पर ड्राइ फ्रूट की दुकान चला रहे देववाथ बताते है, “1929 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जुड़े जिसके बाद वो 1929, 1932, 1940, 1944 में जेल गए. 1933 में उनकी शादी हो गई लेकिन वो ज्यादातर जेल में रहते थे. तो मेरी नानी कहती थी कि मैने अपनी बेटी के गले में कलसी बांध कर पानी में डुबो दिया है.”
ईमानदारी की मिसाल बने फनी गोपाल सेनगुप्ता
पूर्णिया और भागलपुर से अपनी पढाई करने वाले फनी गोपाल सेनगुप्ता को बांग्ला, हिन्दी, उर्दु, अंग्रेजी भाषा पर अधिकार था.
परिवार के पास फनी गोपाल के जो कागज़ात हैं उनमें अंग्रेजी दैनिक अखबार ‘द सर्चलाइट’ का भी एक पत्र है. इस पत्र में संपादक सुभाष चन्द्र सरकार ने फनी गोपाल सेनगुप्ता को टैगोर की कविताओं के हिन्दी अनुवाद के लिए धन्यवाद दिया है.
पत्र में लिखा है कि ये कविताएं संपादक प्रदीप के संपादक को भेज रहे है.
परिवार के पास मौजूद दस्तावेज़ों में फनी गोपाल सेनगुप्ता की डायरी है जिसमें वो रोजाना की गतिविधियां बेहद महीन अक्षरों में अंग्रेजी में लिखते थे. इसके अलावा पार्लियामेंट लिखे नोटपैड के पन्ने है जिसमें उनका संसद सत्र के दौरान हुआ खर्च लिखा है.
देवनाथ सेन बताते है, “उस वक्त जब सत्र चलता था तब 40 रूपये रोज़ाना मिलता था. सासंद लॉज में रहते थे और दिल्ली आना-जाना भी अपने पैसे पर करना पड़ता था.”
“पिताजी थर्ड क्लास में सफर करते थे और यहां क्षेत्र में साइकिल से ही घूमते थे. क्योंकि पैसे थे नहीं.”
खुद देवनाथ सेन की पढ़ाई आर्थिक तंगी के चलते छूट गई.
देनवाथ सेन बताते है, “हम 3 भाई और 2 बहन थे. पिताजी सांसद थे लेकिन परिवार में बहुत आर्थिक तंगी थी. मैने पूर्णिया कालेज में दाखिला लिया था लेकिन बीए नहीं कर पाया और 1971 में मैंने ये दुकान खोल ली. हालांकि बहन शतोदल और मृदुला सेन में से छोटी बहन मृदुला को पोस्ट ग्रेजुएशन कराया.”
1980 में फनी गोपाल सेनगुप्ता गुज़र गए और साल 2012 में उनकी पत्नी.
देवनाथ कहते है, “हमारे पिता ने जीवन बहुत ईमानदारी से जिया. वो चार बार सांसद रहे लेकिन हम लोगों को कभी दिल्ली नहीं ले कर गए. बस एक बार पूरा परिवार दिल्ली घूमने गया था.”
मुख्यमंत्री के पोते कर रहे हैं मज़दूरी
पूर्णिया शहर में स्थित इस दुकान से कुछ दूर ही मजदूरों की मंडी लगती है. काम के इंतजार में खड़े मजदूरों में बसंत और कपिल पासवान भी है.
ये दोनों ही बिहार के तीन बार और पहले दलित मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री के पोते है.
रोजाना पूर्णिया के केनगर प्रखंड के बैरगाछी से ये लोग काम की तलाश में 14 किलोमीटर का फासला तय करके आते हैं. मजदूरी करते हैं और लौट जाते हैं. भोला पासवान की कोई संतान नहीं थी, उनकी जिंदगी के सहारे उनके भाइयों के बच्चे ही रहे.
भोला पासवान को आग देने वाले उनके भतीजे विरंची पासवान अब बूढे हो चुके है.
वो कहते थे, “मेरी और मेरे बच्चों की पूरी जिंदगी मजदूरी करते हुए कट गई. बहुत मुश्किल से राशन कार्ड मिला है. लेकिन ये भी एक ही है जबकि बेटे तीन है. हमको तीन राशन कार्ड दिलवा दीजिए. जिंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी.”
परिवार के पास अपनी कोई ज़मीन नहीं है. लेकिन परिवार का कहना है कि गांव में भोला पासवान का स्मारक बनाने के लिए तीन डेसीमिल जमीन सरकार को दे दी.
विरंची बताते है, “डी एम साहब से कहा कि आपके चचा का स्मारक बनेगा, तो हमने ज़मीन दे दी. क्या करते?”
विरंची के पोते-पोतियां बगल के ही भोला पासवान प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते है. विरंची के बेटे बसंत पासवान गुस्से से कहते है, “21 सितंबर को भोला बाबू की जयंती रहती है तो प्रशासन को हमारी याद आती है.”
पूर्णिया में दूसरे चरण में चुनाव होने है. भारतीय राजनीति पर नज़र रखने वाली संस्था एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि 2004 से अब तक बिहार के सांसद और विधायकों की औसत संपत्ति 2.46 करोड़ है. इसमें पुरुषों की बात करें तो ये 2.57 करोड़ और महिला सांसद/ विधायकों की 1.61 करोड़ है.
नेताओं के इस धनबल और बाहुबल के बीच सादगी, सरलता और ईमानदारी से जीने वाले फनी गोपाल सेनगुप्ता और भोला पासवान शास्त्री जैसे नेता भी थे.
देवनाथ सेन कहते है, “लोग बहुत सम्मान करते हैं. कोई ये तो नहीं कहता चोर का बेटा जा रहा है. अब नई पीढ़ी आ गई जो मेरे पिता को नहीं जानती. जो उनके जैसे मूल्य रखने वालों को भूल रही है.”
Input : BBC Hindi