आज सावन की पहली सोमवारी है। ऐसा मैं पहली बार देख रही हूं कि सावन के समय भगवान का द्वार अपने भक्तों के लिए बंद है। हम सभी कोरोना वेश्विक माहमारी से लड़ रहे हैं और अच्छे पल की दुआ कर रहे हैं।

सावन की पहली सोमवारी पर आज हम सबने अपने-अपने घरों में ही रह कर शिव का आवाहन किया है। साथ ही समाज समेत पूरे परिवार के लिए अच्छे दिनों की कामना की है।

मुज़फ्फरपुर के गरीबनाथ मंदिर में हर साल भक्तों का दरबार लगता था। हाथों में लोटा लिए कांवरियों समेत श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता था मगर इस साल वहां खामोशी है। ना ही बोल-बम की जयकार है और ना ही बाबा का धाम पहले की तरह गुलज़ार है।

आइए इस लेख के ज़रिये जानते हैं, मुज़फ्फरपुर के देवघर कहे जाने वाले मंदिर की। मैं बात कर रही हूं बाबा गरीबनाथ मंदिर की। जहां सावन के महीने में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। सावन के महीने में यह मंदिर आस्था का केंद्र रहता है। देवघर की तर्ज पर बाबा के यहां भी श्रद्धालु डाक बम लेकत जाते हैं। कांवरिया दल सोनपुर के पहलेजा घाट से जल उठाते हैं और 70 किमी की दूरी तय करके बाबा पर जल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां डाक बम गंगा जल लेकर महज 12 घंटे में ही जलाभिषेक करते हैं।

इसे मनोकामनालिंग भी कहा जाता है क्योंकि यहां आने वाले अपने सभी भक्तों की फरियाद भगवान शिव पूरी करते हैं। कहते हैं न सच्चे मन से मांगों बाबा हर मुराद पूरी करते हैं। यही कारण है कि बाबा को मनोकामनालिंग के नाम से भी जाना जाता है।

बाबा गरीबनाथ का इतिहास लगभग तीन सौ साल पुराना है। मान्यता है कि पहले यहां घना जंगल हुआ करता था और यहां सात पीपल के पेड़ थे। मान्यता है कि पेड़ की कटाई के समय उसमें से लाल रक्त पदार्थ निकलने लगे, जिसके बाद कटाई बंद कर दी गई। इसी बीच महादेव का शिवलिंग प्रकट हुआ। लोग बताते हैं कि ज़मीन कके मालिक को बाबा का स्वप्न आया और पीजी अर्चना शुरु हो गई।

बाबा के दरबार को पिछले कुछ सालों में भव्यता प्रदान कि गई है। भक्तों का अटूट विश्वास भी बना हुआ है। सावन का यह महीना आपके लिए खुशियां लेकर आए हम यही कामना करते हैं।

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