स्वतंत्रता आंदोलन में मुजफ्फरपुर की धरती का अहम रोल रहा। खुदीराम बोस ने बम धमाका कर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी तो बापू ने सत्याग्रह शुरू करने से पहले इसी धरती पर कदम रखे। ऐसे कई नाम के बीच नेताजी सुभाषचंद्र बोस का भी इस धरती से जुड़ाव रहा। फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन के बाद उनका यहां एक बार आना हुआ था। सोशलिस्ट नेता रौनन रॉय के आमंत्रण पर वे यहां आए तो थे शहर को कल्याणी केबिन (चाय-नाश्ते की कुर्सी-टेबल वाली पहली दुकान) समर्पित करने। मगर, यहां के युवा उन्हें सुनना चाहते थे। युवाओं की मांग पर 26 अगस्त, 1939 को ओरिएंट क्लब के मैदान में उनका क्रांतिकारी भाषण हुआ था। इसके अलावा जीबीबी कॉलेज (अब एलएस कॉलेज) में भी उनका स्वागत हुआ था।

बिहार बंगाली एसोसिएशन के जिला महासचिव देवाशीष गुहा कहते हैं, ओरिएंट क्लब के मैदान में नेताजी के सामने कविगुरु के गीत ‘तोमार आसन शून्य आजि, हे वीर पूर्ण करो…. गूंजते रहे। उन्हें यहां के लोग संदेश दे रहे थे, आपका आसन खाली है, हे वीर इसे भरो….। वे कहते हैं, गांधीजी के प्रति नेताजी के मन में बहुत आदर था। फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रचार व मतभेदों के बावजूद वे देश के संकट को देखते हुए युवाओं को गांधीजी के बताए रास्ते पर चलने का आह्वान किया।

इस बारे में मनीषा दत्ता कहती हैं, जीबीबी कॉलेज में भी युवाओं ने नेताजी का भव्य स्वागत किया था। उनसे पहले बापू चंपारण सत्याग्रह शुरू करने से पहले यहां आ चुके थे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय कांग्रेसियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल तिलक मैदान भी वे गए। ज्योतिंद्र नारायण दास व शशिधर दास के जिस कल्याणी केबिन का उन्होंने उद्घाटन किया था वहां से वर्षों तक शहर में आने वाले गण्यमान्य लोगों की सर्विस दी जाती रही। मगर नेताजी की यादों से जुड़े स्थल आज पूरी तरह उपेक्षित हैं, जबकि इन्हें संजोने की जरूरत थी।

देवाशीष गुहा भी कहते हैं, जयंती के समय ही नेताजी को कुछ लोग याद करते हैं। उनसे जुड़ा ओरिएंट क्लब का मैदान ही देख लीजिए। इस पर किसी की नजर नहीं। उनकी जयंती पर भी बिहार में अवकाश नहीं होता है। ऐसे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर भी एक दिन का अवकाश होना चाहिए।

Input: Dainik Jagran

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